कुल पृष्ठ दर्शन : 14

You are currently viewing कभी-कभी मन करता है…

कभी-कभी मन करता है…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
********************************************

पँख मेरे हों मैं भी उडूँ, कभी-कभी मन करता है,
मुझसे विलग मुझको करूँ, कभी-कभी मन करता है।

मैं अपूर्ण या पूर्ण पिंड हूँ, इच्छा तन या मन हूँ मैं,
स्वयं को दुनिया आँखों देखूँ, कभी-कभी मन करता है।

स्वप्न की गोदी में जागूँ, नींद की थपकी बन जाऊँ,
रात लपेट किनारे रख‌ दूँ, कभी-कभी मन करता है।

तारिकाओं में चल-चल कर, चाँद को लेकर हाथों में,
निहारिका में जा बैठूँ, कभी-कभी मन करता है।

छिपा रखूँ चुप अपने भीतर, सूरज की कुछ किरणों को,
डुबकी उस रश्मि में लगाऊँ, कभी-कभी मन‌ करता है।

गले लगा बूंदों के घर में, बैठ मेघ उड़न खटोला,
बरखा से जा कर बतियाऊँ, कभी-कभी मन करता‌ है।

बीज समा कर पौधा बनना, वृक्ष से फिर बीज बनना,
जीवन की संरचना देखूँ, कभी-कभी मन करता है।

साँय-साँय ध्वनि सागर की हो, नीरवता बसा कोलाहल।
सुना न हो पहले वो सुन लूँ, कभी-कभी मन करता है।

धडकन के स्पंदन में जीवन, थक जाता चलते-चलते,
पाँव हृदय के भी सहलाऊँ, कभी-कभी मन करता है॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।