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गुरु-शिष्य महिमा को बढ़ाएं

विनोद वर्मा आज़ाद
देपालपुर (मध्य प्रदेश) 

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डूंगरपुर के एडीएम ने वर्षों बाद अपनी गुरु पिपलागूँज निवासी प्राथमिक शिक्षिका माया ननोमा को ढूंढा और उनसे अशीर्वाद लेने चल पड़े। मिले तो बस दृश्य ऐसा था कि…..सैलाब बह निकला नयनों से…l जी हाँ,गुरु- शिष्य की महिमा से मैं रूबरू होता रहा हूँ। मेरे पिताजी स्व. बसंतीलाल वर्मा के सेवाकाल और सेवानिवृत्ति के बाद भी ऐसे दुर्लभ वाकये होते रहे।
उनके अनेक शिष्य उनके अंतिम समय तक मिलने आते रहे और उनके सेवाकाल की कई घटनाएं हमें बताते रहे। एक शिष्य तो अभी रजिस्ट्रार पद से निवृत्त हुए हैं,वे जब भी गांव आते तो पिताजी के चरण छूकर भेंट दिया करते थे। चूंकि मेरा पेशा भी शिक्षा जगत से ही है,तो ऐसे अनेक वाक़ये मेरे साथ भी हुए हैं,पर इस वृतांत ने मन को झकझोर ही नही दिया बल्कि अश्रुधारा ही बह निकली। गुरु के लिए धन-दौलत के कोई मायने नहीं होते,उनके लिए तो विद्यार्थी चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त कर ले, यही सबसे बड़ा सम्मान और गौरव का पल होता है। मेरे दो विद्यार्थियों ने पीएचडी की है। एक शासकीय सेवा में है वो तो हमेशा मिलता रहता है लेकिन एक को मैं हमेशा याद करता हूँl वह एक संस्थान में प्राध्यापक है। दोनों में पढ़ाई के लिए स्पर्धा होती थी। ऐसे विद्यार्थी हर संस्था में होते ही हैं,बस गुरु की पारखी नज़र ऐसे विरले छात्रों को सही तरीके से तराश ले तो वह निश्चित ही कोहिनूर हो सकता है।
शिक्षिका माया ननोमा की जौहरी वाली नज़र ने विनय नामक विद्यार्थी की पहचान की और उचित मार्गदर्शन दिया। उसी का परिणाम आज की इस गुरु-शिष्य परम्परा का निर्वहन हुआ है।
आज एक बात मन को बहुत खलती है,जब कोई अच्छा व तेजतर्रार विद्यार्थी का किसी विद्यालय से दाखला निकलता है,तब समर्पित गुरु के मन में टीस उठती है,दर्द होता है कि हमारा एक अच्छा विद्यार्थी जा रहा है।
बहुत पश्चाताप होता है। प्रयास भी करते हैं कि वह न जाये।
मेरे एक मित्र ने पद-प्रतिष्ठा के चलते एक बेटे के ८वीं करने के बाद दूसरे बेटे को विद्यालय से निकाल लिया। बड़ा बेटा जबलपुर से अभियंता हो गया,दूसरा खेती कर रहा है। एक विद्यार्थी को दाखला व परिणाम नहीं देकर पालक को बुलाया और उसे अन्यत्र विद्यालय में प्रवेश के लिए बताया तो उन्होंने मेरे कहे अनुसार भर्ती करवा दियाl आज दोनों भाई चिकित्सक होकर अपने दवाखाने चला रहे हैं। बात इतनी ही है कि पारखी नज़र हर शिक्षक में होती है,बस उन नज़रों का इस्तेमाल जो कर सके वो माया ननोमा और जो न कर सके…..उनके लिए मेरे पास शब्द नहीं है।
अभी कुछ दिन पहले हमारे राष्ट्रपति ने अपने गुरु का सम्मान किया और चरण छूकर आशीर्वाद लिया,यह पल उस महानतम व्यक्तित्व के लिए कितना हर्षोल्लास वाला हुआ होगा,राष्ट्रपति के लिए गुरु के सामने प्रोटोकाल के भी कोई मायने नहीं थे। गुरु-शिष्य की इस परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए समस्त शिक्षाविदों से प्रार्थना हैl

परिचय-विनोद वर्मा का साहित्यिक उपनाम-आज़ाद है। जन्मतिथि १ जून १९६२ एवं जन्म स्थान देपालपुर (जिला इंदौर,म.प्र.)है। वर्तमान में देपालपुर में ही बसे हुए हैं। श्री वर्मा ने दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर सहित हिंदी साहित्य में भी स्नातकोत्तर,एल.एल.बी.,बी.टी.,वैद्य विशारद की शिक्षा प्राप्त की है,तथा फिलहाल पी.एच-डी के शोधार्थी हैं। आप देपालपुर में सरकारी विद्यालय में सहायक शिक्षक के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत साहित्यिक,सांस्कृतिक क्रीड़ा गतिविधियों के साथ समाज सेवा, स्वच्छता रैली,जल बचाओ अभियान और लोक संस्कृति सम्बंधित गतिविधियां करते हैं तो गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षण सामग्री भेंट,निःशुल्क होम्योपैथी दवाई वितरण,वृक्षारोपण,बच्चों को विद्यालय प्रवेश कराना,गरीब बच्चों को कपड़ा वितरण,धार्मिक कार्यक्रमों में निःशुल्क छायांकन,बाहर से आए लोगों की अप्रत्यक्ष मदद,महिला भजन मण्डली के लिए भोजन आदि की व्यवस्था में भी सक्रिय रहते हैं। श्री वर्मा की लेखन विधा -कहानी,लेख,कविताएं है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचित कहानी,लेख ,साक्षात्कार,पत्र सम्पादक के नाम, संस्मरण तथा छायाचित्र प्रकाशित हो चुके हैं। लम्बे समय से कलम चला रहे विनोद वर्मा को द.साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)द्वारा साहित्य लेखन-समाजसेवा पर आम्बेडकर अवार्ड सहित राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा राज्य स्तरीय आचार्य सम्मान (५००० ₹ और प्रशस्ति-पत्र), जिला कलेक्टर इंदौर द्वारा सम्मान,जिला पंचायत इंदौर द्वारा सम्मान,जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा सम्मान,भारत स्काउट गाइड जिला संघ इंदौर द्वारा अनेक बार सम्मान तथा साक्षरता अभियान के तहत नाट्य स्पर्धा में प्रथम आने पर पंचायत मंत्री द्वारा १००० ₹ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही पत्रिका एक्सीलेंस अवार्ड से भी सम्मानित हुए हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-एक संस्था के जरिए हिंदी भाषा विकास पर गोष्ठियां करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के विकास के लिए सतत सक्रिय रहना है।

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