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दुष्कर्म:जागरूकता के साथ पारिवारिक सहयोग आवश्यक

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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जितने हम सभ्य बनते जा रहे हैं,उतने अधिक हम असभ्य हो गए हैं। विरुद्ध लिंग के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है,पर आजकल इसने रोग का रूप ले लिया है़। इसने इतनी विद्रूपता का रूप धारण कर लिया है़ कि,नारी अब घर में भी सुरक्षित नहीं है। यौनाचार के प्रकरण घर में और निजीयों द्वारा सबसे ज्यादा हो रहे हैं। इनमें महिला पिता,सौतेले पिता,सौतेले भाई,चाचा-मामा आदि से भी सुरक्षित नहीं है अब तो रास्ते में,विद्यालय, महाविद्यालय में और बाज़ार में भी यह सामान्य घटना होने लगी है़।
इसमें सबसे अधिक महिलाएं,बच्चियां व युवतियाँ प्रभावित होती हैं,और जब इसका खुलासा होता है तब जमीन खिसक जाती है। इसमें किसको दोषी बताएं ? कभी कभी स्त्रियां भी दोषी होती हैं, पर अधिकांश पुरुष वर्ग सबसे अधिक दोषी होता है,और दुष्परिणाम महिलाओं को ही भोगना पड़ता है।
हाल ही की इस घटना ने वास्तव में अपनी सब सीमाएं त्याग दी। एक बहिन के साथ,वह भी १२ वर्ष की, यह दुष्कर्म किया गया। अब उस बच्ची का क्या भविष्य होगा ? उसे समाज कुलटा कहेगा और उस बच्चे का क्या हश्र होगा! उसको घर से बाहर कर दिया और जिसने कुकर्म किया,उसे जेल होगी या न भी हो,पर बच्ची अबोध…उस पर क्या बीत रही होगी!
भारत देश में कानून बहुत कड़े बने हैं,पर उससे बचने के भी रास्ते बहुत अधिक हैं। इसका इलाज़ असाध्य हो चुका है। किसी को भी भय नहीं रहा कानून का,और न्याय व्यवस्था इतनी लचर है कि,कब निर्णय होगा कोई नहीं जानता।
इसमें किस-किसको कैसे समझाया जाए और यह सामाजिक पारिवारिक व्यवस्था है। बच्चियाँ बदनामी के डर से अत्याचार सहन करती हैं और जब ऐसे दुष्परिणाम आते हैं,तब सब असहाय हो जाते हैं। इसके लिए जागरूकता के साथ पारिवारिक सहयोग की भी जरुरत है। घर से बाहर निकलने से कोई हल नहीं निकलेगा। इसके लिए परिवारजनों को उसे सहयोग देकर उसकी सुरक्षा करनी चाहिए। जो हो गया,उसका कोई प्रतिफल नहीं मिलेगा,पर इस तरह घर से निकालने के बाद और भूखे भेड़िया उसका शरीर नोंचेंगे।
यह प्रत्येक व्यक्ति का पुनीत कर्तव्य है कि, हम अपने अपने परिवारजनों की सुरक्षा जरूर करे और युवक-युवतियों को शिक्षित करे कि,कोई किसी भी लोभ में न फंसे।
यह सामाजिक और चारित्रिक गिरावट की निशानी है। हम फिर से असभ्य समाज की ओर जा रहे हैं। तब तक कितनों का भविष्य बिगड़ेगा,कोई नहीं जानता। इसमें आरोपी को कठिन से कठिन सजा मिले और हो सके तो उसे नपुंसक बनाएं। इस घिनौने कृत्य की जितनी भी निंदा की जाए,वह कम है। इसकी रोकथाम करना बहुत बड़ा सामाजिक दायित्व है।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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