ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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जल ही कल….
अब कैसे होगा,
किसान का गुजारा
पानी के बगैर खेतों का,
बदल गया नजारा।
अब कैसे…
उजड़ गए हैं बाग-बगीचे,
मरने लगे मवेशी
सूख गए सरोवर सारे,
दिखने लगा किनारा।
अब कैसे…
खाने को अनाज नहीं है,
पीने को नहीं पानी
चिलचिलाती धूप में,
फिर रहा मारा-मारा।
अब कैसे…
अंधकार में है भविष्य,
क्यों नहीं हमने ये सोचा
रुष्ट हो गई प्रकृति देखो,
बरस रहा है अंगारा।
अब कैसे…
भूल हुई है निश्चित हमसे,
पेड़ नहीं कोई नया लगाया
अंधाधुंध की है कटाई,
कैसे बदलें प्रकृति का नजारा।
अब कैसे…
अगर बचाना है पानी,
आओ मिलकर पेड़ लगाएं।
फिर से आएगी खुशहाली,
बदल जाएगा जीवन सारा।
अब कैसे…॥
परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।