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माँ शारदे, ऐसा वर दो

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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आया मनभावन वसंत…

अज्ञानता को दूर हटा कर,
जग में ज्ञान का दीप जलाएँ
सद्भावों की राह चुनें हम, मानवता का पाठ पढ़ाएँ।
माँ वरप्रदायिनी, ऐसा वर दो…

मिल-जुल कर सब पेड़ लगाएँ,
धरा को सुंदर-स्वच्छ बनाएँ
प्रदूषण न रहे कहीं भी, हरियाली चहुँ-दिशि फैलाएँ।
माँ भारती, ऐसा वर दो…

लड़ाई-झगड़ा नहीं करें हम,
द्वैष-ईर्ष्या दूर भगाएँ।
खुशियों से चहके घर-आँगन,
प्यार-प्रीत की पींग बढ़ाएँ॥
माँ शारदे, ऐसा वर दो…

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।