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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का परिणाम

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र में संवैधानिक अधिकार है’, यह सब भली-भांति जानते हैं, लेकिन ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ से संबद्ध सीमाओं को निर्धारित नहीं करते। अभिव्यक्ति मनुष्य के मनोभावों को प्रकट करने का साध्य व साधन दोनों है।
वर्तमान में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ सभ्य आचरण का परिचायक न होकर कुछ भी, कभी भी, किसी को भी, कैसे भी, कहीं भी ऊटपटाँग तरीक़े से कहने की अभिव्यक्ति मात्र बन गया है। कतिपय अपवाद को छोड़कर साधारण व्यक्ति के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अमूल्य निधि है। व्यक्ति के आचरण की समृद्धि का साधन है। अपराधी व सामान्य से सामान्य व्यक्ति अपनी इस स्वतंत्रता को प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने को तत्पर रहता है। समकालीन समय में आए-दिन घटित हो रही अनेक घटनाएँ इसी तथ्य की पुष्टि करती हैं। विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता परिपूर्ण करने के लिए क्रोध व वेदना, हत्या या अपहरण जैसे मामले अक्सर समाज में देखने को मिलते हैं। अमूमन व्यक्ति को अपने निजी हितों की पूर्ति व समाज के संबंध में सामंजस्य से विचार अभिव्यक्त करने का प्रयास करना होता है। यह देखा गया है कि अधिकांशतः परिणाम विपरीत ही लक्षित होते हैं।

जीवनपर्यंत इस पर आश्रित हो ‘समझौते’ के बल पर टिकी अभिव्यक्ति स्वतंत्रता से दास बन जाती है। अन्य शब्दों में, समझौता एक प्रकार से विवशता का नेतृत्व बन जाता है, और चेतना से सुख को ग़ायब कर अभिव्यक्ति का सीमांकन तय कर देता है। इसलिए, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुछ नियमों व सिद्धांतों के अंतर्गत निश्चित होना आवश्यक है।

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