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आधुनिकता की चकाचौंध में संस्कारों का `अन्तिम संस्कार`

शिवांकित तिवारी’शिवा’
जबलपुर (मध्यप्रदेश)

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विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है,जहाँ सभी धर्मों को मानने वाले लोगों का बसेरा है एवं सभी जातियों व संप्रदायों के अनुयायी यहाँ निवासरत हैं।
भारत देश प्राचीनकाल में ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था,क्योंकि यहाँ पर निवासरत समस्त लोगों में एकता और एकजुटता के प्रमुख गुण सहजता से मिलते थे। लोगों के लिये उनके संस्कार, संस्कृति व सभ्यता सबसे महत्वपूर्ण और सबसे जरूरी थे। उस समय लोगों में सामाजिकता और सामंजस्यता के बड़े अदभुत नजारे देखने को मिलते थेl
उस समय के लोगों के मन में दया,प्रेम एवं परोपकार के भाव बड़ी ख़ूबसूरती से विद्यमान होते थे। सभी एकजुट होकर एक-दूसरे की मदद के लिये तत्परता से आगे आते थे,लेकिन आज आधुनिकता की इस चकाचौंध भरी दुनिया में हम अपनी संस्कृति,सभ्यता और संस्कारों का अन्तिम संस्कार कर रहे हैं,यानि कि हम अपनी प्राचीनतम कला एवं साहित्य के साथ-साथ सारे संस्कारों को दरकिनार कर रहे हैंl इसे आधुनिकता रूपी आईने से देख रहे हैं,जो हमारे संस्कारों को गर्त में पहुँचा रहा है।
आज के इस आधुनिकता भरे दौर में हम अपने शिष्टाचार एवं नैतिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं,जो हमारे जीवन की सबसे अहम चीजें हैं,जिनसे हमारे व्यक्तित्व और संस्कारों का पता चलाता है,और समाज में हमारी एक विशेष छवि निर्मित होती है।
आज के इस आधुनिकतम युग में अगर युवा पीढ़ी की बात करें तो वह सिर्फ और सिर्फ दिखावटी मुखौटे को ओढ़े हुए हैl उसे न तो संस्कार और सभ्यता की फिकर है,और न ही ज्ञान हैl वह तो बस अपनी निजी ज़िन्दगी में पूरी तल्लीनता से धुत है। वह न तो संस्कारों का ज्ञान लेना चाहता है,न ही अपने जीवन में अपनाना चाहता हैl वह अपने जीवन में नैतिकता और शिष्टाचार को भी स्थान नहीं देना चाहता,क्योंकि उसके पास इन चीजों के लिये समय ही नहीं हैl उसे इन चीजों की कभी जरूरत भी महसूस नहीं होती,क्योंकि न ही उसने प्राचीनतम इतिहास को पढ़ा है,न ही उसके पास इतिहास को पढ़ने या दोहराने का समय है।
युवा पीढ़ी सिर्फ इस वहम में जी रही है कि,इस आधुनिकता भरे दौर में जो कुछ चल रहा है बस यहीं तक ही जीवन है,और यहीं सब-कुछ खत्म हो जाता हैl न अब इसके आगे कुछ नया जानना है, और न ही इसके पीछे के प्राचीनतम इतिहास को दोहराना है।
बस उनकी समस्या यही है कि,वह जिज्ञासु प्रवृत्ति को नहीं अपना रहे हैं,और न ही वो कुछ जानने के लिये सीमाओं को पार करना चाहते हैंl उन्हें लगता है कि इस आधुनिक दौर में जो कुछ जैसा चल रहा है,वह पर्याप्त है और यही विशेष कारण है कि आज बड़ी तेजी से नैतिकता और शिष्टाचार के साथ-साथ संस्कार, संस्कृति व सभ्यता का पतन हो रहा है।
अगर इस आधुनिकतम दौर में युवा पीढ़ी ने संस्कार,संस्कृति व सभ्यता को भुलाया तो वह बस अंग्रेजी नववर्ष शराब पीकर मनाते रह जाएंगे,लेकिन हिन्दी नववर्ष की ओर न ही उनका कभी ध्यान जायेगाl न ही उनमें ऐसी जागरुकता होगी कि,वह इसमें फर्क ढूँढ पाएं।
बस यही संस्कारों का फर्क है,अगर आधुनिकता में इनका बीजारोपण युवा पीढ़ी में न किया गया तो देश की प्रगति,संस्कृति और सभ्यता का विनाश होना तय है।

परिचय–शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म.प्र.)है। वर्तमान में जबलपुर (मध्यप्रदेश)में बसेरा है। मध्यप्रदेश के श्री तिवारी ने कक्षा १२वीं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है,और जबलपुर से आयुर्वेद चिकित्सक की पढ़ाई जारी है। विद्यार्थी के रुप में कार्यरत होकर सामाजिक गतिविधि के निमित्त कुछ मित्रों के साथ संस्था शुरू की है,जो गरीब बच्चों की पढ़ाई,प्रबंधन,असहायों को रोजगार के अवसर,गरीब बहनों के विवाह में सहयोग, बुजुर्गों को आश्रय स्थान एवं रखरखाव की जिम्मेदारी आदि कार्य में सक्रिय हैं। आपकी लेखन विधा मूलतः काव्य तथा लेख है,जबकि ग़ज़ल लेखन पर प्रयासरत हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का है,और यही इनका सर्वस्व है। प्रकाशन के अंतर्गत किताब का कार्य जारी है। शौकिया लेखक होकर हिन्दी से प्यार निभाने वाले शिवा की रचनाओं को कई क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं तथा ऑनलाइन पत्रिकाओं में भी स्थान मिला है। इनको प्राप्त सम्मान में-‘हिन्दी का भक्त’ सर्वोच्च सम्मान एवं ‘हिन्दुस्तान महान है’ प्रथम सम्मान प्रमुख है। यह ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-भारत भूमि में पैदा होकर माँ हिन्दी का आश्रय पाना ही है। शिवांकित तिवारी की लेखनी का उद्देश्य-बस हिन्दी को वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठता की श्रेणी में पहला स्थान दिलाना एवं माँ हिन्दी को ही आराध्यता के साथ व्यक्त कराना है। इनके लिए प्रेरणा पुंज-माँ हिन्दी,माँ शारदे,और बड़े भाई पं. अभिलाष तिवारी है। इनकी विशेषज्ञता-प्रेरणास्पद वक्ता,युवा कवि,सूत्रधार और हास्य अभिनय में है। बात की जाए रुचि की तो,कविता,लेख,पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ना, प्रेरणादायी व्याख्यान देना,कवि सम्मेलन में शामिल करना,और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर ध्यान देना है।

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