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इकरार

केवरा यदु ‘मीरा’ 
राजिम(छत्तीसगढ़)
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हाथों में हाथ लेकर इकरार करती हूँ,
हाँ सजन,मैं तुमसे प्यार,प्यार करती हूँ।

मेरे जीवन बगिया के तुम ही तो माली,
सिंदूर तुम हो माँग का,मेरे होंठों की लाली।
तेरे लिये ही प्रियतम श्रृंगार करती हूँ,
हाँ सजन,मैं तुमसे प्यार,प्यार करती हूँ॥

तुम जिन्दगी हो मेरी हो साँसो की सरगम,
बिंदिया की हो झिलमिल पायल की छमछम।
जीना नहीं तेरे बिन,स्वीकार करती हूँ,
हाँ सजन,मैं तुमसे प्यार,प्यार करती हूँ॥

जब से मिले तुम मेरी दुनिया बदल गई,
धरती की बात क्या है,जन्नत ही मिल गई।
पायी है तुमसे,जिन्दगी इकरार करती हूँ,
हाँ सजन,मैं तुमसे प्यार,प्यार करती हूँ॥

गर रूठ जाऊँ कभी,मना ही लेना तुम।
आ के पास प्रीत गीत गुनगुना ही देना तुम।
जन्मों से तुम पे,जां निसार करती हूँ,
हाँ सजन,मैं तुमसे प्यार,प्यार करती हूँ॥

हाथों में हाथ लेकर इकरार करती हूँ,
हाँ सजन,मैं तुमसे प्यार,प्यार करती हूँ॥

परिचय-केवरा यदु का साहित्यिक उपनाम ‘मीरा’ है। इनकी जन्म तारीख २५ अगस्त तथा जन्म स्थान-ग्राम पोखरा(राजिम)है। आपका स्थाई और वर्तमान बसेरा राजिम(राज्य-छत्तीसगढ़) में ही है। आपने स्थानीय स्तर पर शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में खुद का व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के तहत महिलाओं को हिंसा से बचाना एवं गरीबों की मदद करना प्रमुख कार्य है। भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए ‘मितानिन’ कार्यक्रम से जुड़ी हैं। आपकी लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल सहित भजन है। १९९७ में श्री राजीवलोचन भजनांजली, २०१५ में काव्य संग्रह-‘सुन ले जिया के मोर बात’,२०१६ में देवी भजन (छत्तीसगढ़ी में)सहित २०१७ में सत्ती चालीसा का भी प्रकाशन हो चुका है। लेखनी के वास्ते आपने सूरज कुंवर देवी सम्मान,राजिम कुंभ में सम्मान,त्रिवेणी संगम साहित्य सम्मान सहित भ्रूण हत्या बचाव पर और हाइकु विधा पर भी सम्मान प्राप्त किया है। केवरा यदु के लेखन का उद्देश्य-नारियों में जागरूकता लाना और बेटियों को प्रोत्साहित करना है। इनके जीवन में प्रेरणा पुंज आचार्यश्रीराम शर्मा (हरिद्वार) व जीवनसाथी हुबलाल यदु हैं।

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