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इक विश्वास था…

डॉ.रीता जैन’रीता’
इंदौर(मध्यप्रदेश)

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मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी लेकर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा थाl उस दिन सफर से लौटकर मैं घर आया तो पत्नी ने आकर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दियाl लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देखकर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुईl
‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम,जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थेl मैंने लिफाफा खोला तो उसमें १ लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थीl इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर…,मैंने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक साँस में ही सारा पत्र पढ़ डालाl पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया,लिखा था-
आदरणीय सर,मैं एक छोटी-सी भेंट आपको दे रहा हूँl मुझे नहीं लगता कि आपके अहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगाl ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए हैl घर पर सभी को मेरा प्रणामl
आपका, अमर
मेरी आँखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गएl
एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलट-पलट रहा था कि,मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ीl वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनय-विनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जाकर खड़ा हो जाताl मैं काफी देर तक मूक दर्शक की तरह यह नजारा देखता रहाl पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य-सी व्यवस्था लगी,लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थीl वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता,फिर वही निराशाl
मैं काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जाकर खड़ा हो गयाl वह लड़का कुछ सामान्य-सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा थाl मुझे देखकर उसमें फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उसने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कींl मैंने उस लड़के को ध्यान से देखा,साफ-सुथरा,चेहरे पर आत्मविश्वास लेकिन पहनावा बहुत ही साधारणl ठंड का मौसम था और वह केवल एक हल्का- सा स्वेटर पहने हुए थाl पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैंने जैसे किसी सम्मोहन से बंधकर उससे पूछा,-“बच्चे,ये सारी पुस्तकें कितने की हैं ?”
“आप कितना दे सकते हैं,सर ?”
“अरे,कुछ तुमने सोचा तो होगाl”
“आप जो दे देंगे”,लड़का थोड़ा निराश होकर बोलाl
“तुम्हें कितना चाहिए ?” उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उसके साथ गुजार रहा हूँl
“५ हजार रुपए”, वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोलाl
“इन पुस्तकों का कोई ५०० भी दे दे तो बहुत है,” मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता था,फिर भी अनायास मुँह से निकल गयाl
अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक थाl जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उसके चेहरे पर उड़ेल दी होl मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ,मैंने अपना एक हाथ उसके कंधे पर रखा और उससे सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा,-“देखो बेटे,मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते,क्या बात है, साफ-साफ बताओ कि क्या जरूरत है ?”
वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा,शायद काफी समय निराशा का उतार-चढ़ाव अब उसके बर्दाश्त के बाहर थाl
‘सर,मैं १०+२ कर चुका हूँ,मेरे पिता एक छोटे-से रेस्तरां में काम करते हैंl मेरा मेडिकल में चयन हो चुका हैl अब उसमें प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत हैl कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं,कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते”, लड़के ने एक ही साँस में बड़ी अच्छी अंग्रेजी में कहाl
“तुम्हारा नाम क्या है ?” मैंने मंत्रमुग्ध होकर पूछाl
“अमर विश्वासl”
“तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते होl कितना पैसा चाहिए ?”
“५ हजार”, अब की बार उसके स्वर में दीनता थीl
“अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे ? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं”,इस बार मैंने थोड़ा हँस कर पूछाl
“सर,आपने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूँ,आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैंl मैं पिछले ४ दिन से यहां आता हूँ,आप पहले आदमी हैं जिसने इतना पूछाl अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आपको किसी होटल में कप-प्लेट धोता हुआ मिलूंगाl” उसके स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थीl
उसके स्वर में जाने क्या बात थी,जो मेरे ज़हन में उसके लिए सहयोग की भावना तैरने लगीl मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था,जबकि दिल में उसकी बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा थाl आखिर में दिल जीत गयाl मैंने अपने पर्स से ५ हजार रुपए निकाले,जिनको मैं शेयर बाजार में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिएl वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी मायने रखते थे,लेकिन न जाने किस मोह ने मुझसे वह पैसे निकलवा लिएl
“देखो बेटे,मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में,तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है,लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूँl तुमसे ४-५ साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी,सोचूंगा उसके लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया”,मैंने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहाl
अमर हतप्रभ था,शायद उसे यकीन नहीं आ रहा थाl उसकी आँखों में आँसू तैर आएl उसने मेरे पैर छुए तो आँखों से निकली दो बूंदें मेरे पैरों को चूम गईंl
“ये पुस्तकें मैं आपकी गाड़ी में रख दूं ?”
“कोई जरूरत नहीं,इन्हें तुम अपने पास रखोl यह मेरा कार्ड है,जब भी कोई जरूरत हो तो मुझे बतानाl”
वह मूर्ति बनकर खड़ा रहा और मैंने उसका कंधा थपथपाया,कार स्टार्ट कर आगे बढ़ा दीl
कार को चलाते हुए वह घटना मेरे दिमाग में घूम रही थी और मैं अपने खेले जुए के बारे में सोच रहा था,जिसमें अनिश्चितता ही ज्यादा थीl कोई दूसरा सुनेगा तो मुझे एक भावुक मूर्ख से ज्यादा कुछ नहीं समझेगा,अत: मैंने यह घटना किसी को न बताने का फैसला कियाl
दिन गुजरते गए,अमर ने अपने मेडिकल में दाखिले की सूचना मुझे एक पत्र के माध्यम से दीl मुझे अपनी मूर्खता में कुछ मानवता नजर आईl एक अनजान-सी शक्ति में या कहें दिल में अंदर बैठे मानव ने मुझे प्रेरित किया कि,मैं हजार २ हजार रुपए उसके पते पर फिर भेज दूंl भावनाएं जीतीं और मैंने अपनी मूर्खता फिर दोहराईl दिन हवा होते गए,उसका संक्षिप्त-सा पत्र आता जिसमें ४ लाइनें होतीं-२ मेरे लिए, एक अपनी पढ़ाई पर और एक मिनी के लिए,जिसे वह अपनी बहन बोलता थाl मैं अपनी मूर्खता दोहराता और उसे भूल जाताl मैंने कभी चेष्टा भी नहीं की कि,उसके पास जाकर अपने पैसे का उपयोग देखूं,न कभी वह मेरे घर आयाl कुछ साल तक यही क्रम चलता रहाl एक दिन उसका पत्र आया कि वह उच्च शिक्षा के लिए आस्ट्रेलिया जा रहा हैl छात्रवृत्तियों के बारे में भी बताया था और एक लाइन मिनी के लिए लिखना वह अब भी नहीं भूलाl
मुझे अपनी उस मूर्खता पर दूसरी बार फख्र हुआ,बिना उस पत्र की सच्चाई जानेl समय पंख लगाकर उड़ता रहा,अमर ने अपनी शादी का कार्ड भेजाl वह शायद आस्ट्रेलिया में ही बसने के विचार में था,मिनी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी थीl एक बड़े परिवार में उसका रिश्ता तय हुआ थाl अब मुझे मिनी की शादी लड़के वालों की हैसियत के हिसाब से करनी थीl एक सरकारी उपक्रम का बड़ा अफसर कागजी शेर ही होता हैl शादी के प्रबंध के लिए ढेर सारे पैसे का इंतजाम…उधेड़बुन…और अब वह चेक ?
मैं वापस अपनी दुनिया में लौट आयाl मैंने अमर को एक बार फिर याद किया और मिनी की शादी का एक कार्ड अमर को भी भेज दियाl
शादी की गहमा-गहमी चल रही थी,मैं और मेरी पत्नी व्यवस्थाओं में व्यस्त थे और मिनी अपनी सहेलियों मेंl एक बड़ी-सी गाड़ी पोर्च में आकर रुकीl एक संभ्रांत से शख्स के लिए ड्राइवर ने गाड़ी का गेट खोला तो उस शख्स के साथ उसकी पत्नी,जिसकी गोद में एक बच्चा था,भी गाड़ी से बाहर निकलेl
मैं अपने दरवाजे पर जाकर खड़ा हुआ तो लगा कि इस व्यक्ति को पहले भी कहीं देखा हैl उसने आकर मेरी पत्नी और मेरे पैर छुएl
‘‘सर,मैं अमर…’’ वह बड़ी श्रद्धा से बोलाl
मेरी पत्नी अचंभित-सी खड़ी थीl मैंने बड़े गर्व से उसे सीने से लगा लियाl उसका बेटा मेरी पत्नी की गोद में घर-सा अनुभव कर रहा थाl मिनी अब भी संशय में थीl अमर अपने साथ ढेर सारे उपहार लेकर आया थाl मिनी को उसने बड़ी आत्मीयता से गले लगायाl मिनी भाई पाकर बड़ी खुश थीl
अमर शादी में एक बड़े भाई की रस्म हर तरह से निभाने में लगा रहाl उसने न तो कोई बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर डाली,और न ही मेरे चाहते हुए मुझे एक भी पैसा खर्च करने दियाl उसके भारत प्रवास के दिन जैसे पंख लगाकर उड़ गएl
इस बार अमर जब आस्ट्रेलिया वापस लौटा तो,हवाई अड्डे पर उसको विदा करते हुए न केवल मेरी बल्कि मेरी पत्नी,बल्कि मिनी सहित सभी की आँखें नम थींl हवाई जहाज ऊंचा और ऊंचा आकाश को छूने चल दिया और उसी के साथ-साथ मेरा विश्वास भी आसमान छू रहा थाl
मैं अपनी मूर्खता पर एक बार फिर गर्वित था,और सोच रहा था कि इस नश्वर संसार को चलाने वाला कोई भगवान नहीं,हमारा विश्वास ही हैl

परिचय-डॉ.रीता जैन लेखन में उपनाम रीता लिखती हैं। ३१ जनवरी १९६६ को उज्जैन में जन्मीं हैं और वर्तमान में इंदौर में निवासरत हैं। मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर से संबंध रखने वाली डॉ. जैन की शिक्षा-एम.फिल.(लेज़र), पीएचडी(प्राणीशास्त्र-प्रबंधन) तथा एमबीए(मानव संसाधन विकास )है। आप कार्यक्षेत्र में प्राचार्य(निजी महाविद्यालय,इंदौर)हैं। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत आप कई संगठनों से जुड़ीं हुई हैं। इनकी लेखन विधा-गीत एवं लेखन है। कई विज्ञान पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख प्रकाशित हुए हैं तो आकाशवाणी इंदौर से विज्ञान वार्ता, कविता एवं परिचर्चा प्रसारण सहित सामाजिक पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित हुई हैं। रीता जी को २००९ में शिक्षा के क्षेत्र में इंदौर नायिका अवार्ड सम्मान,खेल के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा २ सितारा प्रावीण्य प्रमाण-पत्र सहित टेबल टेनिस में राज्य तक विजेता प्रमाण-पत्र,निर्मला पाठक अवार्ड और युगल गरबा प्रतियोगिता में प्रथम आने पर कलेक्टर द्वारा सम्मानित किया गया है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-जन्तु जीवाश्म पर शोध कार्य है,जिससे प्रभावित होकर लंदन के जीवाश्म विज्ञानी डॉ.एंड्रू स्मिथ ने निवास पर आकर काम को बहुत सराहा है। निवास पर ही जीवाश्म संग्रहालय भी बनाया है,जिसे देखने-अध्ययन करने सभी विद्यार्थी(निःशुल्क) आते हैं। लेखनी का उद्देश्य-एक ऐसा माध्यम है जिससे हम अपने विचारों का आदान-प्रदान करते हैं,और प्रेरित भी होते हैं। इनके लिए प्रेरणा पुंज डॉ.पूर्णिमा मंडलोई हैं। विशेषज्ञता-विज्ञान एवं प्रबंधन में है,तो रुचि-लेखन,संगीत,पढ़ना तथा भ्रमण में है।

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