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उम्मीद की किरण

वाणी बरठाकुर ‘विभा’
तेजपुर(असम)
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अरूणा करवट बदल रही है। ‘नहीं,आज भी मुझे नींद नहीं आयेगी।’ वो सोच रही है… बार-बार मनोज की याद आ रही है। आठ महीने पहले आज के दिन ही तो वो हादसा हुआ था। आज भी उस दुर्घटना के दृश्य आँखों में सजीव हैं। दिल काँप उठता है। अरूणा की सोच रात की तरह ही गहरी होती जा रही है। मनोज की मृत्योपरांत मिले जीवन बीमा के पैसे अब तक रिया और जिया के स्कूल की फीस के साथ-साथ घर चलने में खर्च हो रहे हैं। ऐसे और कितना दिन तक चलेगा ? कल फैमिली पेंशन के कामों में फिर से ऑफिस जाना है। सब तो कहते हैं कि जल्द से जल्द हो जायेगा,लेकिन कहाँ ! कब तक !! ऑफिस वाले तो काम को आगे बढ़ाने के लिए आज ये कागजात चाहिए…कल वो कागजात चाहिए कहकर टाल-मटोल कर रहे हैं। श्रीवाणी को भी तो अपने पिता की मृत्यु पर वहीं बैंक में पिताजी की जगह पर नौकरी मिली है। सब कहते हैं,-“मुझे भी पति की जगह पर नौकरी मिलनी चाहिए।” मैं अपनी योग्यता के सारे प्रमाण-पत्र दे चुकी हूँ और बैंक मैनेजर से प्रार्थना भी की है। पता नहीं ऑफिस वालों को और क्या चाहिए! क्या करूँ…कैसे बेटियों को बड़ा करूँ !” तभी पास के ऑफिस की घंटी ने दो बजने का संकेत दिया जो सन्नाटे को चीरकर सीधे उसके कानों में पड़ी। ”नहीं नहीं,उसे अब सो जाना चाहिए। कल सुबह रिया और जिया को स्कूल भेजकर ऑफिस जाना है।” वह बुदबुदाई और दोनों कान रजाई से ढँककर सोने की कोशिश की।
सुबह दोनों बेटी को स्कूल भेजकर जल्दी-जल्दी घर के काम निपटा कर ऑफिस चली गई। ऑफिस में वो सीधे बैंक के असिस्टेंट मैनेजर से मिली क्योंकि कुछ दिन पहले वहाँ के मैनेजर का तबादला हुआ था। असिस्टेंट मैनेजर के केबिन में जब गई, तब उन्होंने बताया कि अब वो मैनेजर से बात कर सकती है क्योंकि आज ही नए मैनेजर ने ज्वॉइन किया है। उसकी बात सुनते ही उसका मन निराशाओं से भर गया। नये मैनेजर..पता नहीं और कितने दिन काम को टालेंगे।
मैनेजर के केबिन का दरवाजा खटखटाकर अनुमति लेकर अंदर आयी । यह क्या ! उसे देखते ही वो जैसी की तैसी ठहर गई । दोनों आँखों से आँसू टपकने लगे। मैनेजर की कुर्सी से उठकर वर्णाली ने अरूणा का आलिंगन किया और बोली-“ये तूने क्या हालत बना रखी है! बैठो-बैठो….।” कहकर अरूणा को कुर्सी पर बिठा दिया। अरूणा ने अपनी बचपन की सहेली वर्णाली को अपनी सारी बातें बता दी। वर्णाली ने अरूणा को आश्वासन दिया कि अब उसे पेंशन और नौकरी के लिए चिंता की कोई आवश्यकता नहीं। अरूणा को उम्मीद की किरण नजर आने लगी।

परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम)है। इनका साहित्यिक उपनाम ‘विभा’ है।  वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम)में निवास है। स्थाई पता भी यही है। असम प्रदेश की विभा ने हिन्दी में स्नातकोत्तर,प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)की शिक्षा पाई है। इनका कार्यक्षेत्र-शिक्षिका (तेजपुर) का है। श्रीमती बरठाकुर की लेखन विधा-लेख,लघुकथा,काव्य,बाल कहानी,साक्षात्कार एवं एकांकी आदि है। प्रकाशन में आपके खाते में किताब-वर्णिका(एकल काव्य संग्रह) और ‘मनर जयेइ जय’ आ चुकी है। साझा काव्य संग्रह में-वृन्दा,आतुर शब्द तथा पूर्वोत्तर की काव्य यात्रा आदि हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में सक्रियता से छपती रहती हैं। सामाजिक-साहित्यिक कार्यक्रमों में इनकी  सक्रिय सहभागिता होती है। विशेष उपलब्धि-एकल प्रकाशन तथा बाल कहानी का असमिया अनुवाद है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-नूतन साहित्य कुञ्ज है। इनकी विशेषज्ञता चित्रकला में है। माँ सरस्वती की कृपा से आपको सारस्वत सम्मान (कलकत्ता),साहित्य त्रिवेणी(कोलकाता २०१६),सृजन सम्मान(पूर्वोत्तर हिंदी साहित्य अकादमी,तेजपुर २०१७), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग),बृजमोहन सैनी सम्मान (२०१८) एवं सरस्वती सम्मान(दिल्ली) आदि मिल चुके हैं। एक संस्था की अध्यक्ष संस्थापिका भी हैं। आपकी रुचि-साहित्य सृजन,चित्रकारी,वस्त्र आकल्पन में है। आप सदस्य और पदाधिकारी के रुप में कई साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-हिंदी द्वारा सम्पूर्ण भारतवर्ष एक हो तथा एक भाषा के लोग दूसरी भाषा-संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इससे भारत के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है। 

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