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ऐसी होली मनाईए…

अजय जैन ‘विकल्प
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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जरा अपने अहंकार को जलाईए,
इस बार ऐसी ही होली मनाईए।

सोचिए,राग-द्वेष गर जल जाएंगे,
सच में रंग फागुन में ऎसे खिलाईए।

रखा क्या है नफरत की भाषा में,
प्रेम से ही अपना सबको बनाईए।

अब तो गुलाब-टेसू भी बगिया में हर्षित हुए,
फागुन की पुरवाई में फसलों-सा मस्ताईए।

लाल-पीला रंग और गुलाल है बहुत कुछ,
इस सतरंगी होली में जरा बच्चा बन जाईए।

प्रेम और उल्लास का पर्व है होली,
सबके संग झूम वातावरण ऐसा बनाइए।

‘फागुन’ महीना है रंगीन रिश्तों का नाम,
नई कोपल,पंछी की तरह थोड़ा मुस्कराईए।

राधा के रंग में रंग लो खुद को कान्हा बन,
छोड़ हर चिंता,प्रेम की बंसी पर लहराईए।

फागुन में मिलें हैं फूलों के सतरंगी झूले,
नन्हें-मुन्ने बन थोड़ा आसमां में उड़ आईए।

आमों की बौंराती डालियां,पंछियों का राग है फागुन,
हर अधूरे सपने को करने पूरा लग जाईए।

यूँ तो फागुन है प्रीत-मीत का उत्सव,
आतंक-गरीबी मिटा,नया फागुन मनाईए॥

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