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काजल की कोठरी में उम्मीद की किरण

डाॅ.देवेन्द्र जोशी 
उज्जैन(मध्यप्रदेश)

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१७वीं लोकसभा के आम चुनाव में जहां नेताओं द्वारा एक-दूसरे के प्रति बदजुबानी,कटु व्यवहार और चरित्र हनन की एक से बढ़कर एक खबरें आए दिन मीडिया की सुर्खी बन रही है जिन्हें लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्त फटकार के बाद चुनाव आयोग का स्वतः संज्ञान जागा और योगी आदित्यनाथ,मायावती,आजम शेख और मेनका गांधी को धार्मिक उन्माद भड़काने का दोषी मानते हुए उन्हें ७२और ४६ घंटे के चुनाव प्रचार-प्रतिबंध की सजा दी गई। राजनीतिक कटुता के इस वातावरण के बीच तिरूअनन्तपुर से आई एक खबर सुकून देने वाली हो सकती है कि केन्द्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीता रमन अपनी धुर विरोधी राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी पार्टी कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री शशि थरूर का हाल जानने अस्पताल जा पहुंची। लोकसभा चुनाव लड़ रहे शशि थरूर चुनाव प्रचार के दौरान एक मंदिर में पूजा करने गए थे जहां उन्हें तोलते समय तराजू की कमानी टूटने से उनके सिर में गंभीर चोट लगने के बाद ६ टाँके लगाए गए हैं। हालांकि,डाॅक्टरों ने उनकी हालत खतरे से बाहर बताई है,लेकिन सीतारमन ने एन चुनाव के बीच उनका हाल जानने पहुंचकर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर जिस मानवीय सरोकार का परिचय दिया है वह एक-दूसरे पर गाली- गलौज और और कीचड़ उछालने की राजनीति कर रहे नेताओं के लिए किसी सबक से कम नहीं है जिसकी आज देश की राजनीति को सर्वाधिक आवश्यकता है।
आज राजनीति एक ऐसे मोड़ पर आ गई है जहां एक-दूसरे को अपशब्द कहना और उन्हें अपमानित करना जितना आसान और दुखद है,वहीं प्रतिद्वन्द्वी पार्टी के नेता का हालचाल पूछने जाना उतना ही दुर्लभ और सुखद लगता है। एक समय था जब राजनीति सिद्धांत,मुद्दों और विचारधारा पर होती थी जिसमें आपसी द्वेष के लिए कोई स्थान नहीं होता था। नेता आपस में वैचारिक मतभेद रखते थे लेकिन उनमें मनभेद नहीं होता था,लेकिन आज की राजनीति में येन-केन प्रकारेण चुनाव जीतने के लिए एक – दूसरे पर चोट करना आम बात है। जो दूसरे को जितनी ज्यादा चोट पहुंचा सके वह उतना बड़ा चुनाव वीर माना जाने लगा है।
आज की राजनीति में कहा जाता है कि विरोधियों पर वार करने का कोई मौका न दें। मौका मिलते ही विरोधियों पर प्रहार करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जाती। आरोप-प्रत्यारोप,परस्पर नीचा दिखाने की कवायद,चरित्र हनन की कोशिश और बदजुबानी के बीच आज के नेता स्त्री-पुरूष के बीच आपसी संवाद की गरिमा और मर्यादा को भी भूलते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के रामपुर लोकसभा चुनाव क्षेत्र के सपा उम्मीदवार आजम शेख की अपनी प्रतिद्वन्द्वी भाजपा प्रत्याशी जया प्रदा के लिए इस्तेमाल की गई शब्दावली इस पतन की पराकाष्ठा है। ऐसे में प्रश्न उठना लाजमी है कि क्या भारतीय राजनीति मानवीय संवेदनाएं खो चुकी है ? क्या एक ही मकसद (जन सेवा) के लिए राजनीति में आए नेतागण अपने को एक-दूसरे का जानी दुश्मन मानने लगे हैं ? क्या नेताओं में इन्सानोचित शिष्टाचार और बोलचाल की गरिमा का भान भी शेष नहीं बचा है ?
जीत-हार अपनी जगह है लेकिन क्या इन नेताओं को परस्पर इतनी मान-मर्यादा का ध्यान नहीं रखना चाहिए कि चुनाव बाद जब मिलें तो एक-दूसरे से आँख से आँख मिलाकर बात कर सकें। दिन-प्रतिदिन स्याह होते राजनीति के इस चेहरे के बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस भद्रता और मानवीय सरोकार का परिचय दिया है,वह एक- दूसरे को अपना दुश्मन मानकर विष वमन करने वाले नेताओं को भले ही अजब लगे लेकिन यह इन्सानियत का तकाजा भी और पतन की और जा रही राजनीति की एक जरूरत भी।
‘आपातकाले मर्यादा नास्ति’ और विपदा तथा दुख बीमारी की घड़ी में अपने तमाम गिले शिकवे,मत-मतान्तर भुलाकर साथ खड़े दिखने का सामान्य शिष्टाचार तो एक सामान्य इन्सान भी निभाना जानता है तो फिर अपने आपको विशिष्ट और लाखों- करोड़ों फालोअर्स का रहनुमा मानने वाले इन नेताओं से इस तरह के आचरण की उम्मीद की ही जा सकती है जो जनता के लिए प्रेरणास्पद हो। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद निर्वाचन आयोग द्वारा नेताओं की बदजुबानी के खिलाफ उठाए गए कदम स्वागत योग्य हैं,लेकिन याद रखा जाए कि कानून से हर समस्या का समाधान संभव नहीं है। खासतौर से मनुष्य के आचार-व्यवहार से जुड़े मामलों की समझ किसी कानूनी डंडे की नकेल के बजाय स्वतः संज्ञान से अपने भीतर से विकसित हो,तभी समाज के बर्ताव में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। हमारे यहां एक कहावत बहुत प्रचलित है “जिके हिया नी सूझे ऊके किया से कई फायदो!’

परिचय–डाॅ.देवेन्द्र जोशी का निवास मध्यप्रदेश के उज्जैन में हैl जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६२ और जन्म स्थान-उज्जैन (मध्यप्रदेश)है। वर्तमान में उज्जैन में ही बसे हुए हैं। इनकी पूर्ण शिक्षा-एम.ए.और पी-एच.डी. है। कार्यक्षेत्र-पत्रकारिता होकर एक अखबार के प्रकाशक-प्रधान सम्पादक (उज्जैन)हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप एक महाविद्यालय-एक शाला सहित दैनिक अखबार के संस्थापक होकर शिक्षा,साहित्य एवं पत्रकारिता को समर्पित हैं। पढ़ाई छोड़ चुकी १००० से अधिक छात्राओं को कक्षा १२ वीं उत्तीर्ण करवाई है। साथ ही नई पीढ़ी में भाषा और वक्तृत्व संस्कार जागृत करने के उद्देश्य से गत ३५ वर्षों में १५०० से अधिक विद्यार्थियों को वक्तृत्व और काव्य लेखन का प्रशिक्षण जारी है। डॉ.जोशी की लेखन विधा-मंचीय कविता लेखन के साथ ही हिन्दी गद्य और पद्य मेंं चार दशक से साधिकार लेखन है। डाॅ.शिवमंगल सिंह सुमन,श्रीकृष्ण सरल,हरीश निगम आदि के साथ अनेक मंचों पर काव्य पाठ किया है तो प्रभाष जोशी,कमलेश्वर जी,अटल बिहारी,अमजद अली खाँ,मदर टैरेसा आदि से साक्षात्कार कर चुके हैं। पत्रिकाओं सहित देश- प्रदेश के प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्रों में समसामयिक विषयों पर आपके द्वारा सतत लेखन जारी है। `कड़वा सच`( कविता संग्रह), `आशीर्वचन`, आखिर क्यों(कविता संग्रह) सहित `साक्षरता:एक जरूरत(अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता वर्ष में प्रकाशित शोध ग्रन्थ) और `रंग रंगीलो मालवो` (मालवी कविता संग्रह) आदि आपके नाम हैl आपको प्राप्त सम्मान में प्रमुख रुप से अखिल भारतीय लोकभाषा कवि सम्मान, मध्यप्रदेश लेखक संघ सम्मान,केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड सम्मान,ठाकुर शिव प्रतापसिंह पत्रकारिता सम्मान,वाग्देवी पुरस्कार,कलमवीर सम्मान,साहित्य कलश अलंकरण और देवी अहिल्या सम्मान सहित तीस से अधिक सम्मान- पुरस्कार हैं। डॉ.जोशी की लेखनी का उद्देश्य-सोशल मीडिया को रचनात्मक बनाने के साथ ही समाज में मूल्यों की स्थापना और लेखन के प्रति नई पीढ़ी का रुझान बनाए रखने के उद्देश्य से जीवन लेखन,पत्रकारिता और शिक्षण को समर्पण है। विशेष उपलब्धि महाविद्यालय शिक्षण के दौरान राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद स्पर्धा में सतत ३ वर्ष तक विक्रम विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व और पुरस्कार प्राप्ति हैl आपके लिए प्रेरणा पुंज-माता स्व.श्रीमती उर्मिला जोशी,पिता स्व.भालचन्द्र जोशी सहित डाॅ.शिवमंगल सिंह सुमन,श्रीकृष्ण सरल,डाॅ.हरीश प्रधान हैं। आपकी विशेषज्ञता समसामयिक विषय पर गद्य एवं पद्य में तत्काल मौलिक विषय पर लेखन के साथ ही किसी भी विषय पर धारा प्रवाह ओजस्वी संभाषण है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन में आपकी रूचि है।

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