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कैसे घुमा देते हैं राजनेता कैमरे को अपनी ओर

शशांक मिश्र ‘भारती’
शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश)

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यह शीर्षक कुछ अलग लग रहा होगा, पर बात ही कुछ ऐसी है। जी हाँ,जब हमारे देश में कोई बड़ा राजनेता जेल जाने को होता है या किसी अपराध या मामले में पूछताछ होने को होती है,तो अपने को इस तरह से पेश करता है,जैसे किसी बड़ी लड़ाई के लिए जा रहा हो या देश के लिए शहीद।
बात आरम्भ करता हूँ साल १९९७ से, जब लालूप्रसाद यादव बिहार में राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर पहली बार जेल जा रहे थे,
तब इस तरह से समर्थकों की भीड़ इकटठी की गई। मीडिया का ऐसा जमावड़ा लगा कि, सारे समाचार पीछे छूट गए और लालू जी की गिरप्तारी पर ही दिनभर चर्चा होती रही। अगले दिन अखबारों का भी यही हाल था।
उसके बाद २०१५ की बात करें तो पी. चिदम्बरम के बेटे कार्ति चिदम्बरम की जब गिरप्तारी हुई तो अपने समर्थकों के साथ
सेल्फी लेते जाते हुए ऐसे दिखे कि मीडिया की सुर्खियों में छा गये। गिरफ्तारी का मुद्दा गौण हो गया,बस राजनीतिक हलचल बढ़ गई।
ऐसे ही नेशनल हेराल्ड प्रकरण में पटियाला हाउस अदालत में पेशी पर जाने से पहले सोनिया और राहुल गांधी ने जिस तरह
से पत्रकारवार्ता की,उससे मूल मुद्दा गौण हो गया और हर तरफ राजनीतिक चर्चा-बहस चलती रही।
हाल ही में सीबीआई के कोलकाता के कमिश्नर के घर पूछताछ पर जाने की सूचना पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी न केवल कमिश्नर के घर गयीं,अपितु उसको मुद्दा
बना कई दिन तक धरने पर बैठी रहीं। परिणाम वह चारों ओर छा गयीं। इससे विविध चैनल और समाचार-पत्र,चर्चा बहसों और समाचारों में अन्य कई महत्वपूर्ण चीजों पर ध्यान नहीं दे पाये।
ऐसा ही फिर देखने को मिला,जब राबर्ट वाड्रा ईडी द्वारा पूछताछ के लिए निकले तो उनके साथ प्रियंका जी के आने से पूरा मामला मीडिया में छा गया। लगभग छः घण्टे तक मीडिया इसी पर केन्द्रित रही। कई पत्रकार ईडी के हर दरवाजे पर तैनात रहे कि,
पूछताछ खत्म होने पर सम्बन्धित किस दरवाजे से निकलेगा। प्रियंका जी लेने आयेंगी या नहीं। इससे पहले दिल्ली में पोस्टर भी
सुबह से चर्चा को गरम किये हुए थे।
उपरोक्त उदाहरण यह समझने के लिए काफी हैं कि आज हमारे देश की राजनीतिक सोच
किस दिशा में जा रही है और किसी भी विषय
को कैसे महत्वपूर्ण बना देना है। अपराध या अपराधी या अपराध का आरोप हाशिये पर कर
देना है। अन्तिम फैसला जब अदालत को ही करना है तो किसी भी एजेंसी से पूछताछ या उसके सामने पेश होने में संकोच किस बात का। न्यायालय प्रमाण के आधार ही दूध का
दूध और पानी का पानी करता है। इससे
सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि उस दिन घटित होने वाले कई महत्वपूर्ण मुद्दे या समाचार की लाइनें धुंधली पड़ जाती हैं। समाचार चैनल हों या समाचार-पत्र,ये उन पर ध्यान नहीं दे पाते या सनसनीखेज के चक्कर में जान-बूझकर अनदेखा कर देते हैं। हम सबने ऐसा देखा भी है।
मेरा यही कहना है कि इस तरह किसी भी गतिविधि को चर्चा में लाकर सुर्खियों में
बनाकर आम जनता या देश को क्या मिल रहा है,उस पर चिन्ता और चिन्तन की आवश्यकता है।

परिचयशशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैl २६ जून १९७३ में मुरछा(शाहजहांपुर,उप्र)में जन्में हैंl वर्तमान तथा स्थाई पता शाहजहांपुर ही हैl उत्तरप्रदेश निवासी श्री मिश्र का कार्यक्षेत्र-प्रवक्ता(विद्यालय टनकपुर-उत्तराखण्ड)का हैl सामाजिक गतिविधि के लिए हिन्दी भाषा के प्रोत्साहन हेतु आप हर साल छात्र-छात्राओं का सम्मान करते हैं तो अनेक पुस्तकालयों को निःशुल्क पुस्तक वतर्न करने के साथ ही अनेक प्रतियोगिताएं भी कराते हैंl इनकी लेखन विधा-निबन्ध,लेख कविता,ग़ज़ल,बालगीत और क्षणिकायेंआदि है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत एवं अंगेजी का रखते हैंl प्रकाशन में अनेक रचनाएं आपके खाते में हैं तो बाल साहित्यांक सहित कविता संकलन,पत्रिका आदि क सम्पादन भी किया है। जून १९९१ से अब तक अनवरत दैनिक-साप्ताहिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचना छप रही हैं। अनुवाद व प्रकाशन में उड़िया व कन्नड़ में उड़िया में २ पुस्तक है। देश-विदेश की करीब ७५ संस्था-संगठनों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज व देश की दशा पर चिन्तन कर उसको सही दिशा देना है। प्रेरणा पुंज- नन्हें-मुन्ने बच्चे व समाज और देश की क्षुभित प्रक्रियाएं हैं। इनकी रुचि- पर्यावरण व बालकों में सृजन प्रतिभा का विकास करने में है।

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