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क्यों होली बे-रंग

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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होली के नहीं रहे हैं,वह पहले जेसै रंग,
हर बार हो रही है यह होली क्यों बेरंग।
कुछ स्ट्राइक हुई,पर अभी कई आतंकी,
मनाते हैं खूनी होली,मचाते हैं आत॔क।
राजनीति के नातों ने भी बदली है कहानी,
बुआ होलिका हो ली अब पहलाद के संग।
जीएसटी,नोटबंदी खूब हुए हैं ये बखान,
उनकी होली मने कैसे,जिनकी जेब तंग।
होली के नहीं रहे…

सफेदपोश नेताओं के,नित-नये हैं किस्से,
किसको चुनें-किसको छोड़ें जनता है दंग।
नेताओं के भाषण पर,रोयें या लगें ठहाके,
ये किसी नशे में हैं या पी रखी इन्होंने भंग।
गले लगे भाई बोलकर,रखें बगल में छुरी,
कब होगा जब अपने लगेंगे अपनों के अंग।
होली के नहीं रहे…

रंग बदलती यह दुनिया यहां पल-पल,
फिर भी पूछते कब बजायें होली की चंग।
झगड़ा-फसाद,आगजनी,हर और अशांति,
न समय-न जगह देखते हर दिन है हुड़दंग।
‘देवेश’ क्या मने होली,जब जिंदगी रंगहीन,
होली पर कुछ तो आये वही मस्ती की तरंग।।

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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