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खूबसूरत ग़ज़लों का संग्रह है `इशरते-क़तरा`

आरती सिंह ‘प्रियदर्शिनी’
गोरखपुर(उत्तरप्रदेश)
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प्रखर गूँज प्रकाशन के तत्वाधान में देशपाल राघव वाचाल एवं संगीता कासिरेड्डी के कुशल सम्पादन में ग़ज़ल (साझा) संग्रह इशरते-क़तरा प्रकाशित हो चुका हैl पूरे देश के विभिन्न स्थानों से १९ ग़ज़लकारों की रचनाएं इसमें सम्मिलित हैं,जिसमें कुछ नवांकुर तो कुछ मंझे हुए रचनाकार भी हैं।
सर्वप्रथम देशवाल राघव की ग़ज़लें हैं,जिसमें प्रेम का अल्हड़पन एवं शोख अदाओं के साथ गरीबों का दर्द भी मिला है।
“दिन व रात कोल्हू में पेला है खुद को
कुनबे का सामान जुटाने की खातिर”


इटावा के चंद्रस्वरूप बिसारिया एक अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक हैं परंतु उनकी गज़लों में एक घायल प्रेमी के दिल की रासायनिक प्रतिक्रियाएं ही दिखती है। ११ वां मिसरा इतना खूबसूरत है कि पढ़ते समय पाठकों के चेहरे का रंग लिटमस-पत्र की तरह परिवर्तित होगा।
“जिंदगी जिंदगी नहीं होती,प्यार के ग़र खुशी नहीं होती
जान जाती चली सनम के बिन प्यार की लौ रुकी नहीं होती”
पुणे की सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डॉ.रंजना वर्मा को ग़ज़ल लेखन के लिए कई पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। उनकी गजलों में मोहब्बत का तजुर्बा भी है और जिंदगी का कटु अनुभव भी। उन्होंने सबको इतनी खूबसूरती से सजाया है कि,जिंदगी के ख्वाब बुनते हुए उनकी खुशी को जिंदगी में समाहित कर देती है,फिर भी वह कहती हैं-
“चले हैं उम्रभर फिर भी कहीं दिखती नहीं मंजिल,
भटकते हैं कदम कोई बता दे रास्ता क्या है….”
बुलंदशहर के विकास वर्धन गुप्त एक स्वतंत्र पत्रकार रह चुके हैंl समसामयिकी पर उनकी पकड़ सबसे अच्छी है।
“जमाने में कहां बाकी नेक नियत की सौगातें,
बचा कर रखिए इनको यह खुद आखिरी निशानी है…”
मुम्बई की के.संगीता की ग़ज़लों में इश्क की मासूमियत एवं विरह की रुहानियत दोनों हीं पढ़ने योग्य है।
“दोनों हैं जुदा लेकिन दिल साथ धड़कते हैं,
कि वह मुझको किताबों में फूलों-सा रखती है…”
सऊदी अरब में कार्यरत साबिर उस्मानी की ग़ज़लों में उर्दू भाषा की नजाकत एवं नफासत छलकती है।
“तड़पने से सुकून हमको मिले सहरा की वादी में,
मिले हैं जख्म जो दिल को उन्हें अच्छा नहीं करते…”
हिंगोली( महाराष्ट्र) के शेर आलम की छोटी-छोटी ग़ज़लों में रदीफ एवं काफिया का इस्तेमाल बखूबी किया गया है।
“दिल को मश्क करके देखूं क्या,
खुद ही से इश्क करके देखूं क्या…”
जयपुर के अध्यापक प्रकाश प्रियम ने जाति धर्म एवं समाज की कुरीतियों पर अपने अशआर लिखे हैं।
“कैसे निकले बाहर बस्तियों से दहशतगर्दों की दहशत है दोस्तों”
पुणे की स्मिता वाडकर मानव संसाधन अधिकारी हैं। वह अपनी ग़ज़लों में –
“बेशुमार अश्क,दर्द बेहिसाब लिखती हैं
जिंदगी,मेरी जिंदगी पर एक किताब लिखती है…”
कटिहार के ठाकुर राष्ट्रभूषण तहत उर्दू के चुनिंदा शे’रों को अंग्रेजी में तजूर्मा करने का काम करते हैं।
“तेरी खुशबूओं की है आरजू मेरे पास खार है जी खार है
मेरा हाल तुझसे छुपा नहीं मैं तो रिंद हूँ जी रिंद हूँ।”
राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में शोध एवं आलेख लिखने वाली जयपुर की अलका जैन आराधना अपनी ग़ज़लों में मासूम प्रेमी के साथ साथ देश का भी सूरते हाल लिखती हैं।
“जिंदगी के सवालात के हल बहुत मुश्किलों से ढूंढे जाते हैं साहब,
क्या कहूं कि देते-देते जवाब सवाल बदल जाते हैं…”
उत्तर प्रदेश के अखिल बदायूँनी की ग़ज़लें समाज में कृषि जीवन की अहमियत भी बताती हैं।
“चलो किसानों की भी अब कुछ बातें कर लें हम,
अपना स्वेद बहा,जो फसल उगाया करते हैं।”
गाजियाबाद के मुकेश शर्मा अपनी कविताओं के लिए हिंदी अकादमी से पुरस्कृत भी हो चुके हैं। इनकी गजलों में भाषा की खूबसूरती एवं उर्दू का सुंदर प्रयोग दिखता है।
“किसका घर,किसकी पत्नी,क्या परवरिश का हिसाब
नज्जारा-ए-आतिश,दोजख-ए-मआल से पूछो”
इसमें लखनऊ के वरिष्ठ लेखा परीक्षा अधिकारी लीना दरियाल की ग़ज़लें
हैं-“कभी नश्तर-सा दिल में चुभो जाती हैं,तो कभी खामोश दिल को डूबो जाती हैंl”
पूरण भंडारी सहारनपुरी वरिष्ठ लेखक हैं। उनकी ग़ज़ल लेखन का अपना एक अलग ही अंदाज है। वह कहते हैं,-
“ए मेरे मौला जिंदगी दे या मौत दे रजा तेरी है,
ऐसे तो जीना मुश्किल है हम जिंदा नहीं रह पाते हैं..l”
आगरा के पत्रकार एवं शिक्षक चंद्रवीर सोलंकी निर्भय को राजीव गांधी युवा कवि सम्मान से सम्मानित भी किया जा चुका है। उनकी ग़ज़लों में राजनीति एवं सामाजिकता साफ झलकती है।
“नजर कौवें गड़ाए हैं कि आखिर कब मिले मौका,
ना चौकीदार सो जाना कि हरकत और भी होगी…”
दिल्ली के वी.के. हुवाब की ग़ज़लें इश्क की रूमानियत से सराबोर होकर पाठकों को भी भिगो देती हैं।
“निगाहों से तुमने इश्क के वायदे किए बहुत,
लब-ए-गुलजार से किया वह बहाना गुजर गया…l”
कोलकाता की सेवानिवृत्त प्राचार्य सुनीता लूल्ला को ग़ज़लों का उस्ताद कहा जाए तो अतिशयोक्ति ना होगी। वह हिंदी,उर्दू एवं सिंधी में भी ग़ज़ल लिखती हैं।
“मेरे दस्तखत है जमीं से फलक तक,
कभी मिट सके वो निशानी नहीं हूँ…l”
श्रीमती मंजू लता जैन को मंच पर सक्रिय रहना बेहद पसंद है। उनकी ग़ज़लों में जीवन के प्रति सकारात्मकता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।
“ज़िंदगी दो-चार दिन की है यहां प्रेम से मिलना-मिलाना चाहिए…”
अंततः,कहना चाहूंगी कि ग़ज़ल काव्य की वह विधा है जिसके शब्दों की खूबसूरती झलकती है। कहने को तो यह विधा अरबी साहित्य से निकली है परंतु अब इसमें कई भाषिक एवं शाब्दिक परिवर्तन हुए हैं। फिर भी खूबसूरती में इजाफा तो हुआ ही है…।

परिचय-आरती सिंह का साहित्यिक उपनाम-प्रियदर्शिनी हैl १५ फरवरी १९८१ को मुजफ्फरपुर में जन्मीं हैंl वर्तमान में गोरखपुर(उ.प्र.) में निवास है,तथा स्थाई पता भी यही हैl  आपको हिन्दी भाषा का ज्ञान हैl इनकी पूर्ण शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी) एवं रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा हैl कार्यक्षेत्र-गृहिणी का हैl आरती सिंह की लेखन विधा-कहानी एवं निबंध हैl विविध प्रादेशिक-राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कलम को स्थान मिला हैl प्रियदर्शिनी को `आनलाईन कविजयी सम्मेलन` में पुरस्कार प्राप्त हुआ है तो कहानी प्रतियोगिता में कहानी `सुनहरे पल` तथा `अपनी सौतन` के लिए सांत्वना पुरस्कार सहित `फैन आफ द मंथ`,`कथा गौरव` तथा `काव्य रश्मि` का सम्मान भी पाया है। आप ब्लॉग पर भी अपनी भावना प्रदर्शित करती हैंl इनकी लेखनी का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से महिलाओं का हौंसला बढ़ाना हैl आपके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैंl  

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