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गरीबों को पाँचवी पीढ़ी ने भी पकड़ाया वही झुनझुना

अजय जैन ‘विकल्प
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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एक बार फिर लोकसभा के लिए चुनावी मौसम आ गया है तो दोनों प्रमुख दल जनता विशेष रूप से गरीबों को गरियाने-पटाने में लगे हैं। जहां मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आतंक के खिलाफ उठाए गए ठोस कदमों सहित अपनी योजनाओं एवं कार्यकाल के विकास कार्यों के आधार पर मैदान में हैं,तो विपक्ष बनाम कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ‘न्याय’,राफेल सहित गरीबों को निश्चित आय देने के नाम पर चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। इस आम चुनाव का परिणाम मई २०१९ में जो भी जाए,लेकिन ऐसा लगता है कि राहुल गांधी को सिर्फ सत्ता ही हासिल करनी है,भले ही फिर शर्त और तरीका जो भी। जरा सोचिए कि क्या किसी गरीब को सालभर के लिए निश्चित रुपए देने से वह नाकारा साबित नहीं होगा,और दूसरी बात इंदिरा गांधी से लेकर आज तक कांग्रेस की तरफ से गरीबी दूर करने की बात सबने कही,पर परिणाम सबके सामने है। नेता अमीर होते गए,तो गरीब और गरीब। गांधी घराने के युवराज सोनिया गांधी से दो कदम आगे आकर यह बात कह रहे हैं कि ‘गरीबी हटाओ’ लेकिन गरीबी उनके पहले वाले भी नहीं हटा सके या हटाई ही नहीं। जवाहरलाल नेहरू से अब तक यानी इतने लंबे समय तक देश में कई राज्यों और अधिकांशत केन्द्र में भी सत्ता पर कांग्रेस का कब्जा होने के बाद अब ७२००० रुपए देकर गरीबी कैसे हटाई जाएगी,यह तो समझ से ही परे की बात है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय मुखिया राहुल गांधी गरीबों को सालभर के लिए ७२००० रुपए देने की अपेक्षा कोई ऐसी योजना बनाते,जिससे उन्हें सालभर में कम से कम १० महीने काम और उसके बदले निश्चित वेतन दिया जा सकता। इससे गरीबों को काम करने की आदत भी रहती,उनका सम्मान बना रहता,प्रति व्यक्ति आय बढ़ती और सरकारी खजाना भी खाली नहीं होता। दूसरी बात कि इस बड़ी राशि की भरपाई निश्चित रूप से दूसरे सामान्य वर्ग या कहें कि ईमानदार करदाताओं से ही की जानी है। ऐसे में यह योजना किसी भी हालत में लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए किए गए लोक-लुभावन वादे से ज्यादा कुछ नहीं है। चुनाव के मुद्दे पर की गई इस घोषणा से साफ लगता है कि कांग्रेस के पास भी आमजन के लिए कोई भविष्य,रोजगार और योजना नहीं है, इसलिए गरीब मतदाता जो देश में बड़ा हिस्सा है,को लुभाने के लिए यह शिगूफा वैसे ही छोड़ा गया है,जैसे गरीबों के खातों में १५ लाख आने की बात के लिए कांग्रेसी आज तक भाजपा और श्री मोदी को कोस रहे हैं,तो फिर सवाल यह है कि दोनों में फर्क क्या…?
जानकर अचरज होगा कि जब इंदिरा गांधी ने जब १९७१ में ‘गरीबी हटाओ’ जैसा लोक-लुभावन नारा दिया था,तो शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने उनके विरोध की हिम्मत की थी। तब उन्होंने इंदिरा गांधी को आईना दिखाने के लिए अपनी पत्रिका के प्रथम पृष्ठ पर कार्टून बनाया था,जिसमें इंदिरा गांधी हाथी पर बैठी है और हाथी के बगल में लिखा है कि-बादशाह दौरे पर आ रहा है,इसलिए गरीबी हटाओ और सारे गरीबों को सड़क के किनारे छुपा हुआ दिखाया था। यानी बाल ठाकरे यह कहना चाहते थे कि दरअसल इंदिरा गांधी गरीबी नहीं,बल्कि गरीबों को हटाना चाहती हैं। तब की उस बात और आज पांच दशक बाद भी यानी पाँचवीं पीढ़ी के राहुल गांधी देशभर में वही झुनझुना बजाने निकले हैं।
हांलांकि,मतदाता और आमजन भी समझदार है,जो सोंच-संभलकर ही मतदान करेंगे,परन्तु यह स्पष्ट है कि राजनेता-दलों को सिर्फ अपनी चिंता है,जनता की नहीं,इसलिए खुद
करोड़पति होकर गरीबों से हमदर्दी के लिए नारे,भाषण और कोरे आश्वासन देते रहिए,भले ही फिर परिणाम जो भी आए एवं जनता रोटी,कपड़ा और मकान के लिए रोती रहे।

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