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चले आओ

डॉ.नीलम कौर
उदयपुर (राजस्थान)
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चले आओ के
बाधाएँ ३७० की
हट गई,
वादी-ए-गुल की
फिजां महक में
अपनेपन की,
खुशबुएं घुल गईं।

चले आओ के बहनों को
देने तोहफा
रक्षा-बंधन का,
विस्थापितों के भी उजड़े
आशियां सजा फिर,
उनको वहाँ बसाने को।

चले आओ के अब आशा का,
संचार नस-नस में
बहने लगा है,
अपनी मिट्टी की सौंधी
महक से तन-मन,
आह्लादित होने
लगा है।

चले आओ के है
आज नागपंचमी का शुभ दिन,
जहर नागों का निकाल
फन कुचल,
स्वतंत्रता की खुली
फिजां में साँस लेने का।

चले आओ के हम लहरायें तिरंगा
काश्मीर की घाटी में,
के अब
एक विधान-एक निशान का,
मुखर्जी का सपना
साकार होने लगा है।

अटकलें विपक्ष की
सारी धरीं रह गईं,
बार-बार चौराहों,
मंचों की चीख-चिल्लाहट
बंद हो रही,
५६” सीना कमाल कर गया
चले आओ बेहिचक,
अब पूर्णतः
कश्मीर हमारा हो गया॥

परिचय – डॉ.नीलम कौर राजस्थान राज्य के उदयपुर में रहती हैं। ७ दिसम्बर १९५८ आपकी जन्म तारीख तथा जन्म स्थान उदयपुर (राजस्थान)ही है। आपका उपनाम ‘नील’ है। हिन्दी में आपने पी-एच.डी. करके अजमेर शिक्षा विभाग को कार्यक्षेत्र बना रखा है। आपका निवास स्थल अजमेर स्थित जौंस गंज है।  सामाजिक रुप से भा.वि.परिषद में सक्रिय और अध्यक्ष पद का दायित्व भार निभा रही हैं। अन्य सामाजिक संस्थाओं में भी जुड़ाव व सदस्यता है। आपकी विधा-अतुकांत कविता,अकविता,आशुकाव्य और उन्मुक्त आदि है। आपके अनुसार जब मन के भाव अक्षरों के मोती बन जाते हैं,तब शब्द-शब्द बना धड़कनों की डोर में पिरोना और भावनाओं के ज्वार को शब्दों में प्रवाह करना ही लिखने क उद्देश्य है।

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