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चलो धरा बचाएं

निशा गुप्ता 
देहरादून (उत्तराखंड)

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विश्व धरा दिवस स्पर्धा विशेष………


आम का पेड़ आज बहुत उदास लग रहा है,
ना डाली झूम रही है ना पत्ता ही हिल रहा है।
मेरे मन में उदासी इसकी शंका जता रही है,
गर्मी बहुत है आज शायद पानी को तरस रहा है॥

चिड़िया भी खामोश-सी है,छाँव भी नहीं दिखती,
कुछ हो रही है गड़बड़,मन मेरा बुझ रहा है।
चलो चलकर आज इन्हें पानी पिला ही आएं,
बह रहा है व्यर्थ वो,उसको बचा ही लाएं॥

पौधों में देकर पानी मुरझाई पत्तियां खिलाएँ,
छत पे रख के पानी पंछी की प्यास बुझाएं।
देंगे दुआएं ये वो जो देती नहीं सुनाई,
हो बुरा जो समय तो बस ये ही काम आएं॥

सारा जहाँ हो सुन्दर हर शै फिर मुस्कुराए,
मिलकर करें काम कुछ पर्यावरण बचाएं।
बादल समय से बरसें,कुछ पेड़ हम लगाएं,
होगी धरा सुरक्षित,फिर हर शाख मुस्कुराए॥

साँसों में ताजगी हो झूम के मन मुस्कुराए,
बागों में जब हम टहल सकें,शांति पा जाएं।
ये धरा हमारी माँ है इसे प्यार से सजाएं,
चलो पेड़ कुछ लगाएं,चलो पेड़ कुछ लगाएं॥

परिचय-निशा गुप्ता की जन्मतिथि १३ जुलाई १९६२ तथा जन्म स्थान मुज़फ्फरनगर है। आपका निवास देहरादून में विष्णु रोड पर है। उत्तराखंड राज्य की निशा जी ने अकार्बनिक रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर किया है। कार्यक्षेत्र में गृह स्वामिनी होकर भी आप सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत श्रवण बाधित संस्था की प्रांतीय महिला प्रमुख हैं,तो महिला सभा सहित अन्य संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं। आप विषय विशेषज्ञ के तौर पर शालाओं में नशा मुक्ति पर भी कार्य करती हैं। लेखन विधा में कविता लिखती हैं पर मानना है कि,जो मनोभाव मेरे मन में आए,वही उकेरे जाने चाहिए। निशा जी की कविताएं, लेख,और कहानी(सामयिक विषयों पर स्थानीय सहित प्रदेश के अखबारों में भी छपी हैं। प्राप्त सम्मान की बात करें तो श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान,विश्व हिंदी रचनाकार मंच, आदि हैं। कवि सम्मेलनों में राष्ट्रीय कवियों के साथ कविता पाठ भी कर चुकी हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य- मनोभावों को सूत्र में पिरोकर सबको जागरुक करना, हिंदी के उत्कृष्ट महानुभावों से कुछ सीखना और भाषा को प्रचारित करना है।

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