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चिड़िया

डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’
रायपुर(छत्तीसगढ़)
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प्यास बुझाने बैठी चिड़िया,
जल को है निहारती
छतों वृक्ष शाखाओं पर,
अपने घरोंदा सँवारती।

तिनका-तिनका जमा कर,
अपना आशियाना सजाती
अनेक सुंदर अलंकरणों से,
घोंसले में चार चाँद लगाती।

दाना चुगकर बच्चों का,
पालन-पोषण करने लगती
अन्न पानी की खोज में,
आकाश पर जा विचरण करती।

चोंच में अनाज उठाकर,
पंख फड़-फड़ा उड़ने लगती
देख न ले शिकारी कहकर,
उसके भय से डरने लगती।

दिन-रात परिश्रम कर,
चंचल मन से चहकने लगती
चूँ- चूँ के मधुर ध्वनि से
धरती भी गूँजा करती।

पक्षी झुण्ड में अठखेलियाँ करती,
आनंद भाव में डूबे रहती
उससे मन अति मोहित हो,
उन्हें देखने आँख तरसती।

पंख पसारे सैर करती,
वन-उपवन में घूमा करती।
निश्छल हृदय से जग में,
चिड़िया जीवन निर्वाह करती॥

परिचय- श्रीमति डॉ. मनोरमा चन्द्रा ‘रमा’ का जन्म स्थान जिला रायगढ़(छग)स्थित खुड़बेना (सारंगढ़) तथा तारीख २५ मई १९८५ है। वर्तमान में रायपुर स्थित कैपिटल सिटी (फेस-३) सड्डू में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-जैजैपुर (बाराद्वार-जिला जांजगीर चाम्पा,छग) है। छत्तीसगढ़ राज्य निवासी श्रीमती चंद्रा ने एम.ए.(हिंदी),एम.फिल.,सेट (हिंदी) सी.जी.(व्यापमं) की शिक्षा हासिल की है। पीएच.-डी.(हिंदी व्यंग्य साहित्य) भी कर चुकी हैं। गृहिणी व साहित्य लेखन ही इनका कार्यक्षेत्र है। लेखन विधा-कहानी,कविता,लेख(हिंदी,छत्तीसगढ़ी) और निबन्ध है। विविध रचनाओं का प्रकाशन कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छत्तीसगढ़ सहित अन्य में हुआ है। आप ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-विभिन्न साहित्यिक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भागीदारी,शोध-पत्र,राष्ट्रीय- अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में १३ शोध-पत्र प्रकाशन व साहित्यिक समूहों में सतत साहित्यिक लेखन है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को लोगों तक पहुँचाना व साहित्य का विकास करना है।

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