कुल पृष्ठ दर्शन : 564

`जंगली` सुंदर,पर दिल तक नहीं पहुची जंगल और इंसान की दोस्ती

इदरीस खत्री
इंदौर(मध्यप्रदेश)
*******************************************************

निर्देशक-चक रसैल और अदाकार-विद्युत जामवाल,अक्षय ओबेराय,आशा भट्ट,अतुल कुलकर्णी,मकरन्द देशपांडे,पूजा सावन्त एवं विश्वनाथ चैटर्जी हैंl कहानी-रितेश शाह,पटकथा-एडम प्रिंस,चक रसैल की है तो संगीत-
समीरउद्दीन ने दिया हैl एक्शन-परवेज शेख और चुंग ली का हैl फिल्म जंगली का फिल्मांकन मार्क इरविन ने किया हैl


दोस्तों,दुनिया की सबसे खूबसूरत रचना है इंसान,यदि इंसान को कुदरत ने सबसे ऊपर रखा है तो उसकी जवाबदेही भी सबसे ज्यादा रखी हैl उन्हीं जवाबदेहियों में एक जवाबदेही जंगल में पाए जाने वाले जानवर चाहे वह दरिंदे हो या परिंदे,या फिर चरिंदे हो सबकी हिफाज़त करना हैl भारत में जानवरों पर खूब फिल्में आई जिसमें -हाथी मेरे साथी-राजेश खन्ना की, तेरी मेहरबानियां,इंटरटेनमेंट उसी श्रृंखला की अगली फिल्म मान सकते हैंl
फ़िल्म पर चर्चा से पहले निर्देशक चक रसैल पर छोटी चर्चा कर लेते हैं, क्योंकि चेक हॉलीवुड फिल्म जगत से भारत में जंगली से शुरूआत कर रहे हैंl चेक ने हॉलीवुड में १९८७ में नैटमेयर श्रंखला की तीसरी फिल्म ड्रीम वॉरियर के निर्देशन से शुरूआत की थीl १९९४ में द मास्क जिम केरी के साथ सफल हास्य फ़िल्म दी,इरेज़र,स्कॉर्पियन किंगl चक ने हॉलीवुड में एक्शन और हास्य परोसा और कामयाबी भी हासिल कीl
अब फ़िल्म पर आ जाते हैं तो इसकी कहानी आसान कहानी हैl
शहर में जानवरों का एक चिकित्सक है राज नायर(विद्युत जामवाल) जो १० साल के लंबे अंतराल के बाद अपने गाँव मे अपनी माँ की बरसी पर पहुँचता है,जहां उसे नई नई समस्याओं से दो-चार होना पड़ता हैl उसके पिता पहले सेंचुरी नामक एक संस्था चलाते थे,जो हाथियों के संरक्षण के लिए काम करती थीl हाथी का नाम आते ही हाथी दांत और उसकी तस्करी ज़हन में आना लाज़मी हैl
उड़ीसा के गाँव मे राज के बचपन की दोस्त शंकरा(पूजा सावन्त) और वन अधिकारी देव भी मिलते हैं,जो सेंचुरी के काम में राज की मदद करते हैंl एक पत्रकार मीरा (आशा भट्ट) राज के पिता और उनकी संस्था सेंचुरी पर आलेख लिखना चाहती है,जो राज के साथ हो जाती हैl राज अपने गांव पहुँच कर अतीत के झरोखे में खो जाता है,जहां उसका एक दोस्त हाथी साथी भोला और दीदी के अलावा अपने गुरू(मकरन्द देशपांडे) से भी मिलता है,जिनसे वह क्लारिपयट्टू सीखा करता थाl
यह था फ़िल्म का स्थापना वाला आयाम,जो कि हल्के-फुल्के तरीके से निर्देशक ने निकाल दियाl अब फ़िल्म में सेंचुरी संस्था जिसमें उसके पिता हाथियों को संरक्षण दिया करते थे,से हाथी दांत की तस्करी से फ़िल्म का जुड़ना लाज़मी ही थाl होता भी यही है कि हाथी दांत की तस्करी करने वाला शिकारी(अतुल कुलकर्णी) सेंचुरी में पहुँच कर हाथी दांत हासिल करने के लिए सेंचुरी को नेस्तनाबूत करने के साथ हाथियों के सरदार भोला और राज के पिता को मौत के घाट उतार देता हैl
यहां से शुरू होती है राज और हाथियों के प्रतिशोध की ज्वालाl क्या हाथी और राज बदला ले पाने में कामयाब होंगे,इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगीl
फ़िल्म का खूबसूरत पहलू है एक्शन और फिल्मांकनl एक्शन दृश्य कमाल ही नहीं,लाजवाब भी हैl विद्युत का एक्शन देखते ही बनता हैl
विद्युत खुद देश के पहले ५ ब्लेक बेल्ट मार्शल आर्ट में आते हैंl लगभग सभी एक्शन दृश्य उन्होंने ही किये हैंl एक्शन दृश्यों का श्रेय चुंग ली को जाता हैl विद्युत की फुर्ती देखते ही बनती है,साथ ही हाथियों के साथ के दृश्य भी शानदार लगते हैंl निर्देशक चक ने हाथियों के साथ जो दृश्य बनाए हैं,उसमें दर्शक हाथियों से लगाव महसूस करने लगता हैl यही फ़िल्म में सफलता की कुंजी हैl
अदाकारी पर बात करें तो विद्युत ने अपना सर्वस्व ईमानदारी से दिया हैl आशा भट्ट की पहली फ़िल्म है, तो पूजा सावन्त सहित दोनों को अभिनय सीखना और समझना बाकी हैl मकरन्द को लंबे समय बाद देख कर अच्छा लगा,लेकिन न ज्यादा संवाद थे और न ही लम्बा किरदारl
अतुल मराठी फिल्म थियेटर के मंजे हुए अभिनेता हैं,जो थोड़े में भी आग लगाने की दक्षता रखते हैंl
संगीत और गाने देखें तो गाने और बेकग्राउंड संगीत दोनों समीरउद्दीन ने दिया हैl गाना-दोस्ती,फकीरा घर आजा-अच्छे बने हैं,जो फ़िल्म को आगे बढ़ाने में मदद करते हैंl मार्क इरविन का फिल्मांकन सुंदर है,जो आँखों में बस जाता हैl
इस फिल्म में कमियां यह है कि निर्देशक चक रसैल भारतीय मसाला फ़िल्म बनाने में गच्चा खा गएl फ़िल्म में सेट कई जगह बनावटी लगे हैंl
गाँव वालों को कुछ दृश्यों में अतिआधुनिक दिखाना भी कहीं-कहीं खलता हैl
फ़िल्म जॉर्ज ऑफ जंगल(१९९७ हॉलीवुड) की याद ताज़ा करती हैl फ़िल्म एक वर्ग विशेष और बच्चों को ही पसन्द आएगीl पुराना विषय है और ज्यादा प्रभावित नहीं करताl फ़िल्म देखते वक्त आगे की फ़िल्म समझ आने लगती है तो ऐसी फ़िल्में दर्शकों को बांध नहीं पाती हैl फ़िल्म से सन्देश निकलता है कि हमारी पृथ्वी और यहां पाई जाने वाली हर नियामत की सुरक्षा की जवाबदेही हमारी बनती हैl इस फ़िल्म को ३ सितारे देना ठीक हैl

परिचय : इंदौर शहर के अभिनय जगत में १९९३ से सतत रंगकर्म में इदरीस खत्री सक्रिय हैं,इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग १३० नाटक और १००० से ज्यादा शो में काम किया है। देअविवि के नाट्य दल को बतौर निर्देशक ११ बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में देने के साथ ही लगभग ३५ कार्यशालाएं,१० लघु फिल्म और ३ हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। आप इसी शहर में ही रहकर अभिनय अकादमी संचालित करते हैं,जहाँ प्रशिक्षण देते हैं। करीब दस साल से एक नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं। फिलहाल श्री खत्री मुम्बई के एक प्रोडक्शन हाउस में अभिनय प्रशिक्षक हैंl आप टीवी धारावाहिकों तथा फ़िल्म लेखन में सक्रिय हैंl १९ लघु फिल्मों में अभिनय कर चुके श्री खत्री का निवास इसी शहर में हैl आप वर्तमान में एक दैनिक समाचार-पत्र एवं पोर्टल में फ़िल्म सम्पादक के रूप में कार्यरत हैंl

Leave a Reply