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जगती चेतना

ओमप्रकाश अत्रि
सीतापुर(उत्तरप्रदेश)
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मँहगाई से ऊब चुका हूँ
थोड़ी साँस हमें लेने दो,
जग में व्याप्त बुराई से
लड़-लड़ कर मैं टूट गया हूँ,
थोड़ा मुझे सुधर लेने दो।

दुनिया के झंझावातों को
पागल-सा न जाने कबसे,
रो-रोकर मैं झेल रहा हूँ
सच पूछो तो मन व्याकुल है,
जरा इसे बहला लेने दो।

अब तक तो मैं खेल रहा था
अपने वही पुराने खेल,
जो खेल-खेल में बिखर गए हैं
मेरे वही पुराने खेल,
नए समय में नए खेल से
नया खेल तो खेल लेने दो।

नए सार-संसार में आकर
मार्ग को अपने भूल गया हूँ,
विपदाएं आती हैं ऐसी
उन सबको मैं सह लेता हूँ,
पर सहने से अब काम न चलेगा
थोड़ी आग अन्दर जलने दो।

जल जाए अब मेरे अन्दर
ओज और क्रोध की ज्वाला,
धधक-धधक कर जलती जाए
सबकी सब संसार की विपदा,
साथ मेरा दे या न दे कोई
पर थोड़ी हवा यहाँ लगने दो॥

परिचय-ओमप्रकाश का साहित्यिक उपनाम-अत्रि है। १ मई १९९३ को गुलालपुरवा में जन्मे हैं। वर्तमान में पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती शान्ति निकेतन में रहते हैं,जबकि स्थाई पता-गुलालपुरवा,जिला सीतापुर है। आपको हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी सहित अवधी,ब्रज,खड़ी बोली,भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। उत्तर प्रदेश से नाता रखने वाले ओमप्रकाश जी की पूर्ण शिक्षा-बी.ए.(हिन्दी प्रतिष्ठा) और एम.ए.(हिन्दी)है। इनका कार्यक्षेत्र-शोध छात्र और पश्चिम बंगाल है। सामाजिक गतिविधि में आप किसान-मजदूर के जीवन संघर्ष का चित्रण करते हैं। लेखन विधा-कविता,कहानी,नाटक, लेख तथा पुस्तक समीक्षा है। कुछ समाचार-पत्र में आपकी रचनाएं छ्पी हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-शोध छात्र होना ही है। अत्रि की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य के विकास को आगे बढ़ाना और सामाजिक समस्याओं से लोगों को रूबरू कराना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारीसिंह ‘दिनकर’ सहित नागार्जुन और मुंशी प्रेमचंद हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज- नागार्जुन हैं। विशेषज्ञता-कविता, कहानी,नाटक लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“भारत की भाषाओंं में है 
अस्तित्व जमाए हिन्दी,
हिन्दी हिन्दुस्तान की न्यारी
सब भाषा से प्यारी हिन्दी।”

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