दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….
वो काली-काली अलकें हैं,
वो खुली-खुली पलकें हैं।
वो नैना भी तो ढुलके हैं,
पर देखे मुझे खुल के हैं
जब देखेया मोहे दिखे है वो ही।
वो प्यारा-प्यारा मुखड़ा है,
जैसे चाँद जमीं उतरा है।
सुमन-सा खिलता है,
कण-कण मिलता है।
मोहे मूरत मन मोही…
जब देखेया मोहे दिखे है वो ही।
देखूँ तुझे चलते तो आए याद पानी है,
नदियों की रौनकें और सागर रवानी है।
मन का सुकून भी है तन की मुस्कान है,
प्यासे इन होंठों की तू ही तो जान है।
वो खिला-खिला अंग भी है,
वो बरखा रूप रंग भी है।
वो प्यारी प्यारी सूरत भी,
वो मोहनी मन मूरत भी।
मन में बसा लूँ अब तो ही,
जब देखेया मोहे दिखे है वो ही।
सूरज में दिखे वो ही अग्नि वो लाली है,
उसके ही दम पर ही तो यहाँ हरियाली है।
सब तुझे अर्पण है जीवन ये जान ये,
तन मन मेरा ये और अभिमान ये
वो श्याम है सलौना है।
वो छोटा-सा खिलौना है,
लागे जादू टोना है
मेरा भी तो होना है।
पा लूँगा इक दिन तो ही…
जब देखेया मोहे दिखे है वो ही,
जब देखेया मोहे दिखे है वो ही॥
परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|