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जिंदगी के रंग

संदीप धीमान 
चमोली (उत्तराखंड)
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जीवन के रंग (मकर संक्रांति विशेष)…..

संग सूर्य के जिंदगी के रंग
भर रहे नव जीवन तरंग,
अर्क भानू हो प्रथम किरण
महके देह,महके अंग-अंग।

फूट रही नवांकुर बन देखो
वृक्षों पर डालियां नवीन,
महक रहे प्राकुंर पुष्पों के
चहक रहे पक्षी भर उमंग।

हो रहा नव सृजन प्रकृति
ले रहा नव भानू आकृति,
बढ़ रहे क़दम उत्तरायण
इन्द्रधनुषी हुए भानू के रंग।

लोहड़ी,पोंगल,संक्रांत कहो
उत्तरायण,मकर भांत कहो,
सूर्य-सा भारत एक मेरा
सप्तरंगी-सा वरदांत कहो।

भोर किरण जब फूट रही हो,
अंजुल से गंगा छूट रही हो।
परिवर्तित होगी किरणें ऐसी,
मंगलमय होगी उर उमंग॥

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