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जीवन

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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कविता में जीवित रहना,
छंद अलंकार से रिस-रिसकर
सांझ ढले निश्चित है सूर्यास्त होना,
सत्य जीवन का प्रलाप यही है।

दु:ख अवसाद पीड़ा बनी कविता,
शाश्वत जगत की झंकार है कविता
समाहित है सुखानुभूति पूर्णिमा-सी,
मेघ से बूंद बन टपकती है कविता।

न्यौछावर है शब्द-शब्द में,
गढ़ी हुई चादरों पर सविता।
अश्रु विलाप आंनद सागर में,
सुगंध बनी जीवंत कविता॥

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