कुल पृष्ठ दर्शन : 177

डाकिया

वाणी बरठाकुर ‘विभा’
तेजपुर(असम)
*************************************************************

निर्मला एकांत मन से ब्रीफकेस से निकली हुई चिट्ठी पढ़ रही है। “दादी…दादी,क्या पढ़ रहे हो ? मुझे भी दिखाइए!” सात वर्षीय पोते अभिज्ञान ने जिज्ञासा भरी नजरों से चिट्ठी देखकर निर्मला से पूछा।
निर्मला ने जवाब दिया,”ये तेरे दादा जी की चिट्ठी थी। आज इस ब्रीफकेस में से निकली।”
अभिज्ञान उत्सुकता से बोल पड़ा-“ये चिट्ठी क्या होती है दादी ? दादा जी भी तो अब भगवान के पास हैं।”
“सुनो चिट्ठी क्या है,मैं तुम्हें बताती हूँ। तुम अब तुम्हारे पिताजी के साथ कैसे बात करते हो,बताओ ?”-निर्मला ने पूछा।
अभिज्ञान ने झट से जवाब दिया,-“पापा तो मुझे रोज वीडियो काॅलिंग करते हैं और मुझे कुछ चाहिए तो मैं पापा को फोन करके बोल देता हूँ।”
“अब जैसे तुम्हारे पापा दूर रहते हैं,ठीक उसी तरह तुम्हारे दादा जी भी दूर रहकर नौकरी करते थे,लेकिन मैं,तुम्हारे पापा और बुआ दादाजी को फोन नहीं करते थे। उस जमाने में फोन नहीं था,तो खबरें कागज पर लिखकर भेजी जाती थी। उसे चिट्ठी कहते हैं।” निर्मला समझाने लगी।
“वो कागज कौन लाकर देते हैं दादी ?” अभिज्ञान ने सवाल किया।
सवाल सुनते ही निर्मला हँस कर बोलने लगी-“वाह,तुमने तो बहुत अच्छा सवाल कियाl वो कागज पहले लिखनेवाला `लेटर बाक्स में डालता है। डाक घर फिर उसे अपने-अपने पते के डाक घरों में भेज देते हैं। डाक घर से डाकिया घर-घर चिट्ठी देकर जाता है।” फिर अभिज्ञान को उसकी माँ ने खाना खाने के लिये बुलाया तो वो खाना खाने चला गया।
निर्मला फिर से चिट्ठी को देखने लगी। उसकी याद ताजा हो गई। उस समय तिनसुकिया से उसके यहाँ तबादला होकर एक डाकिया आया था। अक्सर वो चिट्ठी देने से पहले निर्मला से कहता है,-“बाइदेउ,बुरा मत मानिए,आज कुछ देर हो गई। चेकनी चुक के प्रमिला बाइदेउ को चिट्ठी पढ़कर सुनानी पड़ी।” सच में डाकिया को भी कितने कष्ट सहने पड़ते हैं। दूर-दूर तक साइकिल से जाकर चिट्ठी देना, कोई अनपढ़ हो तो उसे पढ़कर सुनाना। ऊपर से घर से इतनी दूर आकर नौकरी करना। निर्मला को खगेन महन्त का गाना याद आ गया और अपने-आप गुनगुनाने लगी…
चिट्ठियों का बोझ पीठ पर लादकर,
दूसरों को प्यार बाँटता हूँ मगर
मेरी प्यारी कैसी है उसका पता नहीं,
बीते दिनों में छोड़ आया,
नन्हें ने तुतलाते हुए कहा था-
पिताजी,जल्दी आना…
आते वक्त खिलौने लाना…ll

परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम)है। इनका साहित्यिक उपनाम ‘विभा’ है।  वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम)में निवास है। स्थाई पता भी यही है। असम प्रदेश की विभा ने हिन्दी में स्नातकोत्तर,प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)की शिक्षा पाई है। इनका कार्यक्षेत्र-शिक्षिका (तेजपुर) का है। श्रीमती बरठाकुर की लेखन विधा-लेख,लघुकथा,काव्य,बाल कहानी,साक्षात्कार एवं एकांकी आदि है। प्रकाशन में आपके खाते में किताब-वर्णिका(एकल काव्य संग्रह) और ‘मनर जयेइ जय’ आ चुकी है। साझा काव्य संग्रह में-वृन्दा,आतुर शब्द तथा पूर्वोत्तर की काव्य यात्रा आदि हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में सक्रियता से छपती रहती हैं। सामाजिक-साहित्यिक कार्यक्रमों में इनकी  सक्रिय सहभागिता होती है। विशेष उपलब्धि-एकल प्रकाशन तथा बाल कहानी का असमिया अनुवाद है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-नूतन साहित्य कुञ्ज है। इनकी विशेषज्ञता चित्रकला में है। माँ सरस्वती की कृपा से आपको सारस्वत सम्मान (कलकत्ता),साहित्य त्रिवेणी(कोलकाता २०१६),सृजन सम्मान(पूर्वोत्तर हिंदी साहित्य अकादमी,तेजपुर २०१७), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग),बृजमोहन सैनी सम्मान (२०१८) एवं सरस्वती सम्मान(दिल्ली) आदि मिल चुके हैं। एक संस्था की अध्यक्ष संस्थापिका भी हैं। आपकी रुचि-साहित्य सृजन,चित्रकारी,वस्त्र आकल्पन में है। आप सदस्य और पदाधिकारी के रुप में कई साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-हिंदी द्वारा सम्पूर्ण भारतवर्ष एक हो तथा एक भाषा के लोग दूसरी भाषा-संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इससे भारत के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है।

Leave a Reply