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देश है तो हम हैं-डॉ. दवे

विश्व हिंदी सम्मेलन विशेष:निदेशक ने दिखाया आईना

नाडी (फिजी)। 

गुरुवार को ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ के मंच से प्रवासी साहित्य पर बात करते हुए साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि प्रवासी साहित्यकार स्वयं की रचनाएं करके एकल योगदान तो दे रहे हैं किंतु समाज और राष्ट्र के लिए उनका योगदान क्या है ? इस बात को भी रेखांकित करना चाहिए ?
आपने स्पष्ट कहा कि, भारत से बाहर गए हुए प्रवासी भारतीय वास्तव में भारतीय संस्कृति के राजदूत हैं। यदि वे भारतीय संस्कृति की ध्वजा संपूर्ण विश्व के साहित्य जगत में फहराते हैं तो निश्चय ही यह भारतीय संस्कृति की भी विजय होगी और भारत की भी विजय होगी। हमें वामपंथी विचार से प्रभावित होकर पूरी दुनिया में चल रहे स्त्री विमर्श को भारतीय प्रतिमान के आधार पर परिवार विमर्श में परिवर्तित करना होगा।
वैश्विक परिदृश्य मैं बच्चों के लिए रचा जा रहा प्रवासी साहित्य भारतीय जीवन मूल्यों के आधार पर ही विश्व को श्रेष्ठ मानव प्रदान कर सकता है। केवल भारत ही एकमात्र देश है जिसमें ‘सात्विक हिंसा’ जैसे दर्शन दिए हैं अर्थात दुर्जन शक्ति के विनाश के लिए सज्जन शक्ति को शक्ति प्रयोग करना पड़े तो वह त्याज्य नहीं है। यही कारण है कि फिजी, मॉरीशस, इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे देशों में रामकथा अत्यंत श्रद्धा के साथ सुनी और पढ़ी जाती है। आपने कहा कि, भारत से बाहर गए हुए प्रवासी साहित्यकारों को अपना दायित्व समझ कर भारत के मूल्यों के प्रचारक के रूप में स्वयं को स्थापित करना होगा।
डॉ. दवे ने आधुनिक युग के लेपटॉप धारी युवाओं से आह्वान किया कि अर्थ तो हाथ का मेल है, देश का सम्मान बढ़ा तो अर्थ की वर्षा होगी। उन्होंने ऐश छोड़कर देश का चिंतन करने का आव्हान किया।

इस कथन पर सर्वदूर उनके वक्तव्य की प्रशंसा हो रही है। मध्यप्रदेश की ख्याति सात समंदर पार पहुंचने हेतु अनेक साहित्यकारों ने डॉ. दवे को बधाई दी है।

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