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न जाने कैसी होली है!

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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रंगो में उत्साह नहीं है,
और उमंगें अनबोली है।
न जाने कैसी होली है…!!

मुस्कानें हो गई खोखली,
न नैनों में है न वो मस्ती…
रंग सभी बेरंग हो गये,
न कोई हँसी-ठिठोली है।
न जाने कैसी होली है…!!

ढोल-नगाड़े मंद हो गये,
चंगों के स्वर बंद हो गये…
मौसम में उल्लास नहीं है,
न चाहत न हमजोली है।
न जाने कैसी होली है…!!

हरपल बदला-बदला लगता,
फागुन अब फागुन न लगता…
तरस रहा मन सूना आँगन,
कब सराबोर होगी झोली है।
न जाने कैसी होली है…!!

सजनी पार्लर में व्यस्त है,
साजन फेसबुक पे मस्त है…
रिश्ते-नाते पड़े सुस्त हैं,
ना मस्तानों की टोली है।
न जाने कैसी होली है…!!

होलिकाएं अब कहां हैं जलतीं,
जलते हैं प्रहलाद बिचारे…
मानव यंत्र-चलित-सा बुत है,
लगती भावों की बोली है।
न जाने कैसी होली है…!!

परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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