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पत्थर की चाह

डॉ.चंद्रदत्त शर्मा ‘चंद्रकवि’
रोहतक (हरियाणा)
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बैठा था मैं नदी किनारे,
पीठ लगा पत्थर के सहारे
एक विचार मेरे मन आया,
प्रभु तेरे विधान हैं न्यारे।
नदी किनारे प्यासा पत्थर,
कैसे पड़ा हताशा पत्थर
कहा अनुभूति की भाषा में,
तू क्या लगाये आशा पत्थर।
क्या है तेरी चाह बता दे,
निज हृदय की थाह बता दे
पड़ गया है क्यों काला रे!
अपनी अंतरदाह बता दे।
सुनो हे निस्पंदन के स्पंदन!
जड़ता के प्राण शारदानंदन
मैं पत्थर पथरीले जग से,
नहीं चाहिए कोई वंदन।
चाह नहीं मेरी मुमताजों का,
स्नेह-स्मारक बन जाना
चाह नहीं किसी सेठ के,
पैरों तले घर में आना।
नहीं चाह है प्रतिमा बन,
मंदिर में पूजा करवाना
चाह नहीं बन महल कंगूरा,
इठला गगन से बतलाना।
मुझे देना उस शिल्पी को,
श्रम से धन्य हो जाऊँ
चाह है भारत माँ के शहीदों का,
समाधि का पत्थर कहलाऊँll

परिचय–डॉ.चंद्रदत्त शर्मा का साहित्यिक नाम `चंद्रकवि` हैl जन्मतारीख २२ अप्रैल १९७३ हैl आपकी शिक्षा-एम.फिल. तथा पी.एच.डी.(हिंदी) हैl इनका व्यवसाय यानी कार्य क्षेत्र हिंदी प्राध्यापक का हैl स्थाई पता-गांव ब्राह्मणवास जिला रोहतक (हरियाणा) हैl डॉ.शर्मा की रचनाएं यू-ट्यूब पर भी हैं तो १० पुस्तक प्रकाशन आपके नाम हैl कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचना प्रकाशित हुई हैंl आप रोहतक सहित अन्य में भी करीब २० साहित्यिक मंचों से जुड़े हुए हैंl इनको २३ प्रमुख पुरस्कार मिले हैं,जिसमें प्रज्ञा सम्मान,श्रीराम कृष्ण कला संगम, साहित्य सोम,सहित्य मित्र,सहित्यश्री,समाज सारथी राष्ट्रीय स्तर सम्मान और लघुकथा अनुसन्धान पुरस्कार आदि हैl आप ९ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल हो चुके हैं। हिसार दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण हो चुका है तो आपने ६० साहित्यकारों को सम्मानित भी किया है। इसके अलावा १० बार रक्तदान कर चुके हैं।

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