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पर्वतों की छटा…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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साकेत पी लिए अंजुरी भर,
अब उत्सर्ग मिले न मिले
इन नैनों को मोक्ष मिला,
आगे स्वर्ग मिले न मिले।

पर्वत शिखर चमके शेखर,
घाटियों की संधियों तक
हेम रजत मणि मुक्ता फूले,
तकते मुग्ध नैन अपलक
हिम छादित अलौकिक बिम्ब से,
कभी संसर्ग मिले न मिले…।

मेघों की मेहमानवाजी,
पर्वत करते मेजबानी
स्वागत ये उत्सुक हो करते,
ऊंचे लगते खानदानी।
वनस्पति जड़ मूल वनों की,
फिर सम्पर्क मिले न मिले…॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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