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पाप-पुण्य

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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पाप-पुण्य परिभाषा जग में,
कर्म फलित मानक होता है
मानदण्ड वे संस्कार मनुज,
सदाचार धारक होता है।

सत्संगति चलता जीवन पथ,
सत्कर्म पुण्य बरसता है
देश धर्म परमार्थ विरत जग,
पाप सीढ़ियाँ नित चढ़ता है।

निज पौरुष बल लघुतर जीवन,
साफल्य सुयश जब खिलता है
मानवता रक्षार्थ कर्म फल,
परमार्थ पुण्य पथ बढ़ता है।

जो बाॅंटे मुस्कान खुशी जग,
दीनार्त्त मीत बन जाता है
जो लाए मुख रेखा सुस्मित,
वह पुण्य पात्र जग भाता है।

जो जीता निज मातृभूमि हित,
सम्मान राष्ट्र रत होता है
नव दर्शन अनुसन्धान नवल,
नव शौर्य कीर्ति रथ चढ़ता है।

जो लिखता सत्कर्म स्वर्ण यश,
संगीत गीत नव रचता है
निर्भेद भाव औदार्य क्षमा,
इन्सान पुण्य बन सजता है।

किन्तु आज जन ग्रसित लोभ छल,
क्रोधाग्नि ज्वाल ख़ुद जलता है
मृगतृष्णा फॅंस झूठ व्यूह रच,
हिंसक घृणा पाप महकता है।

लोभ कपट दंगा हित साधन,
सब रिश्तों को खो जाता है
दुराचार दुष्कर्म घृणित पथ,
खल पातक पथ गिर जाता है।

प्रकृति कुटिल दुर्दान्त दनुज नित,
आघात वतन कर जाता है
कुलांगार अपयश अपमानित,
आतंक पाप मन भाता है।

अविनत दुर्भाषी उत्श्रृंखल,
साजिश वतन गढ़ जाता है
कुल कलंक माता ममतांचल,
उपहास पाप तम छाता है।

अब निर्धारण पाप पुण्य जग,
बस स्वार्थ तुला तुल पाता है।
कर्म फलक विस्मृत अब मानक,
पाप पुण्य स्वार्थ धुल जाता है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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