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पिंजड़ा

सुशीला रोहिला
सोनीपत(हरियाणा)
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पिंजड़ा स्वर्ण जड़ित दीवारों का बना
खूब सजा खूब बड़ा।
सोने की कटोरी,
मदे की भरी।

अफ़सोस हाय!
सब फीकी लगे।
चाहत है परिन्दे की,
नील-गगन में उड़े
पंछी के पंख,
बेजान पड़े।

कटुक निबौरी चाहे मिले,
नीड़ भले ना मिले।
जल सरोवर का भले,
शाखाओं की टहनी
पर झूला पड़े।

हे ईश्वर! मुक्त कंठ दो,
गीत स्वतंत्रता का गाए।
जल सरोवर पी ले,
पंखों की उड़ान
वापिस लौटा दो।

चाहत में रंग भर,
सपने साकार कर।
सोने का फंदा तोड़,
खुला आसमान
चाहत है मेरी॥

परिचय-सुशीला रोहिला का साहित्यिक उपनाम कवियित्री सुशीला रोहिला हैl इनकी जन्म तारीख ३ मार्च १९७० और जन्म स्थान चुलकाना ग्राम हैl वर्तमान में आपका निवास सोनीपत(हरियाणा)में है। यही स्थाई पता भी है। हरियाणा राज्य की श्रीमती रोहिला ने हिन्दी में स्नातकोत्तर सहित प्रभाकर हिन्दी,बी.ए., कम्प्यूटर कोर्स,हिन्दी-अंंग्रेजी टंकण की भी शिक्षा ली हैl कार्यक्षेत्र में आप निजी विद्यालय में अध्यापिका(हिन्दी)हैंl सामाजिक गतिविधि के तहत शिक्षा और समाज सुधार में योगदान करती हैंl आपकी लेखन विधा-कहानी तथा कविता हैl शिक्षा की बोली और स्वच्छता पर आपकी किताब की तैयारी चल रही हैl इधर कई पत्र-पत्रिका में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका हैl विशेष उपलब्धि-अच्छी साहित्यकार तथा शिक्षक की पहचान मिलना है। सुशीला रोहिला की लेखनी का उद्देश्य-शिक्षा, राजनीति, विश्व को आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार मुक्त करना है,साथ ही जनजागरण,नारी सम्मान,भ्रूण हत्या का निवारण,हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाना और भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान प्रदान करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-हिन्दी है l आपकी विशेषज्ञता-हिन्दी लेखन एवं वाचन में हैl

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