भोपाल (मध्यप्रदेश)
पृथ्वी है हमारी घर,जीवनदायिनी,
है नारी की भाँति सर्वगुण सम्पन्न गृहिणी।
उपजे इस पृथ्वी पर अनेक वीर,
पृथ्वी को बचाने दुश्मन पर चलाये तीर।
प्रकृति के अनेक रंग से सजी पृथ्वी,
जीवन के हर साज से निखरती पृथ्वी।
सात रंग के रंगों से सजा इसका रुप,
कहीं निखरी छांव है,तो कहीं धूप।
सरगम से सुरीला इसका संगीत,
जैसे फसलें गा रही मधुर गीत।
कभी सरसों-सी पीली तो अम्बर-सी नीली,
चादर ओढ़े करती नटखट अठखेली।
कभी निखरी तो कभी संवरी इसकी काया,
अपने हर चलचित्र को किया अंदाज़-ए-बयां।
हर रुप को खुद ने ही संजोया,
पृथ्वी तू ही जाने तेरी माया।
है माँ(पृथ्वी) तेरी अजीब कहानी,
आखिर कह दी अपनी ही जुबानीll
परिचय-तृप्ति तोमर पेशेवर लेखिका नहीं है,पर प्रतियोगी छात्रा के रुप में जीवन के रिश्तों कॊ अच्छा समझती हैं।यही भावना इनकी रचनाओं में समझी जा सकती है। आपका साहित्यिक उपनाम-तृष्णा है। जन्मतिथि २० जून १९८६ एवं जन्म स्थान-विदिशा(म.प्र.) है। वर्तमान में भोपाल के जनता नगर-करोंद में निवास है। प्रदेश के भोपाल से ताल्लुक रखने वाली तृप्ति की लेखन उम्र तो छोटी ही है,पर लिखने के शौक ने बस इन्हें जमा दिया है। एम.ए. और पीजीडीसीए शिक्षित होकर फिलहाल डी.एलएड. जारी है। आप अधिकतर गीत लिखती हैं। एक साझा काव्य संग्रह में रचना प्रकाशन और सम्मान हुआ है।