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भारतीय संस्कृति और भाषाओं के वैश्विक प्रचारक प्रो.रत्नाकर नराले

डॉ.राकेश कुमार दुबे
टोरंटो(कनाडा)

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टैग-साहित्य सेवा को समर्पित ……..

भारत से बाहर भारतीय मूल के लोगों एवं अभारतीय लोगों में भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं के प्रचार में भारतीय मूल के कनाडा निवासी प्रो.रत्नाकर नराले का नाम आज सबसे प्रमुखता से लिया जाता है। लगभग ५० वर्षों से कनाडा में रहते हुए प्रो.नराले हजारों भारतीय मूल के अंग्रेजी-भाषी एवं अभारतीय लोगों को भारतीय संस्कृति से परिचित कराने एवं उनमें भारतीय भाषाओं का बीज बो चुके हैं। ११ सितंबर,१९४२ को नागपुर(महाराष्ट्र) में जन्में रत्नाकर नराले ने पुणे विश्वविद्यालय से बी.एस-सी.,पुणे विश्वविद्यालय से एम.एस-सी. एवं आई.आई.टी. खड़गपुर से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। कालीदास संस्कृत विश्वविद्यालय(नागपुर) से भी उन्हें पीएच.डी. की उपाधि दी गयी। प्रो.नराले ५० वर्ष से कनाडा में निवास कर रहे हैं,और उन्हें वहां की नागरिकता प्राप्त है। हिंदी,संस्कृत,मराठी,बंगाली,पंजाबी,तमिल,उर्दू,अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाओं के जानकार प्रो.नराले ने कनाडा में रहते हुए मराठी,बंगाली,पंजाबी,तमिल और उर्दू भाषाओं के प्रचार में साधारण रुप से और हिंदी तथा संस्कृत के प्रचार में विशेष रुप से अपना योगदान दिया है। उन्होंने टोरंटो स्कूल बोर्ड के साथ ही टोरंटो के तीनों विश्वविद्यालयों(यार्क विश्वविद्यालय,टोरंटो विश्वविद्यालय और रायर्सन विश्वविद्यालय)में हिंदी पढ़ाई है। शायद ही किसी भारतीय मूल के व्यक्ति को इन तीनों विश्वविद्यालयों में पढ़ाने का यह गौरव प्राप्त हो।

विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त प्रो.नराले का संबंध कई अन्य संस्थाओं से भी रहा है। वे हिंदू इन्स्टिट्यूट,टोरंटो के प्रधानानार्य (१९९५से),संस्कृत हिंदी रिसर्च इन्स्टिट्यूट,टोरंटो के अध्यक्ष तथा पुस्तक भारती के निदेशक (१९९० से) हैं।

प्रो.नराले लेखक,प्रकाशक और संगीतकार तीनों एकसाथ हैं। पेशे से इंजीनियर प्रो.नराले ने बालकृष्ण दोहावली(महाकाव्य),नंदकिशोर दोहावली(महाकाव्य),गीता दोहावली,महाकाव्य,रामायण दोहावली महाकाव्य,संगीत श्रीकृष्णायन,महाकाव्य,संगीत श्रीरामायण,महाकाव्य,गीता का शब्दकोश और अनुक्रमणी,गीता दर्शन,हिंदी शिक्षा,नयी संगीत रोशनी,संगीत श्रीकृष्ण रामायण के गिने-चुने पुष्प,संगीत श्री-सत्यनारायण व्रत कथा सहित हिंदी पुस्तकें;रत्नाकर-रचितं गीतोपनिषद् महाकाव्यम्,पातंजल-योगदर्शन-दीपिका आदि लिखी हैं।

दोहा छंद और विविध रागों के गीतों में लिखे हुए बालकृष्ण दोहावली,नंदकिशोर दोहावली, गीता दोहावली और रामायण दोहावली चारों महाकाव्य हिंदी जगत के लिए महत्त्वपूर्ण वङ्मयीन देन हैं।इतिहास रचने वाला भारतीय संस्कृति-संस्कृत-हिंदी संगीत जगत का अनूठा महाकाव्य है। २००० पृष्ठ का यह वृहत् ग्रंथ हिंदी वांङ्मय की पराकाष्ठा है। राग व छंदशास्त्र की यह मंगल कविता-सविता शत-प्रतिशत संगीत से भरी है। इसे भारत के कई पद्म विभूषित महारथियों के आशीर्वाद प्राप्त हैं।

श्रीव्यास महामुनि के बाद,श्रीगीता का पूर्णतया अनुष्टुप श्लोक छंद में रत्नाकर रचित गीतोपनिषद् एक अकेला मनोरम गीताज्ञान का सागर है।

लेखन के अतिरिक्त प्रो.नराले के दो और कार्य अति सराहनीय है। संस्कृत और हिंदी के प्रचार के लिए उस जमाने में कम्प्यूटर वगैरह अस्तित्व में न होने के कारण वे हस्तलिखित या टंकलिखित शैक्षणिक सामग्री की साइक्लेस्टाइल या ब्लू प्रिंट माध्यम से पुस्तकें बना कर हिन्दी,संस्कृत व गीता की कक्षाएँ चलाने लगे। फिर झेराक्स तंत्र आ गया और उनकी कार्यक्षमता उन्नत हो गई। धीरे-धीरे डेटा-प्रोसेसिंग उपलब्ध हुई तब उन्होंने अपने हिंदी-संस्कृत फाण्टस् बनाकर हिन्दी सीखने की सी.डी. और देवनागरी के अनुपम चार्ट के साथ हिंदी-संस्कृत का प्रचार आरंभ कर दिया। रत्नाकर नराले द्वारा बनाए हुए रत्नाकर नामक देवनागरी,हिंदी,संस्कृत,मराठी,(तमिल,उर्दू और गुरुमुखी) टी.टी.एफ फॉण्टस् इतने सुंदर और आसान थे कि कनाडा के अखबार,मीडिया संस्थाएँ,लेखक और पुस्तक-भारती के प्रकाशन इन्हीं उत्कृष्ट फॉण्टस् का प्रयोग करने लगे। इन फाॅन्ट के अतिरिक्त ‘नराले’,‘सरस्वती’, ‘गणेश’,‘आदेश’ सदृश अनेक फाॅन्ट भी उन्होंने बनाये। प्रथम मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार प्राप्त करने वाले हरिशंकर आदेश के सभी महाकाव्य ‘आदेश’ फाॅन्ट में ही टाइप हुए थे। १९८९ में वर्ल्ड-वाइड-वेब इंटरनेट आ गया। रत्नाकर नराले की बिना मूल्य आन-लाइन हिंदी शिक्षा की विशेष सुविधा हुई। विश्व के सभी हिन्दी प्रेमियों के लिये निःशुल्क हिंदी पाठ उपलब्ध किये गये। इस अहम सुविधा का लाभ दुनिया की सभी दिशाओं के देशों से अनगिनत लोग उठाने लगे।

प्रो.नराले का एक बहुत ही उत्तम कार्य कनाडा से ही पुस्तकों का प्रकाशन आरंभ करना था। उन्होंने १९९० में ही ‘पुस्तक भारती’ प्रकाशन की स्थापना की और सभीं प्रकार की पुस्तकों के प्रकाशन की व्यवस्था बहुत ही सस्ती दर पर कनाडा से ही कर दी। इससे पूर्व भारतीयों को अपनी पुस्तकें प्रकाशित करवाने हेतु भारत आना पड़ता था। उनके प्रकाशन की सबसे अच्छी बात यह है कि उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का प्रचार विश्व स्तर का होता है और साथ ही सभीं पुस्तकें हमेशा के लिए ऑनलाइन सुरक्षित हो जाती हैं।

प्रो.नराले को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार-सम्मान प्राप्त हैं। उन्हें गीता वाचस्पति वेदव्यास प्रतिस्थान,पुणे २०१३,हिन्दू रत्न पुरस्कार,कनाडा के १५०वी-जयंती महोत्सव पर और २०१७,कला वारिधि सम्मान आदि जैसे कई पुरस्कार-सम्मान प्राप्त हैं।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)

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