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‘मत’ की राजनीति

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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वायदों की फेहरिस्त बनाकर,
जनता को नेता लुभा रहे हैं।
झूठे-झूठे दिखा के सपने,
सबको मूर्ख बना रहे हैं।

अच्छे दिन तो कभी न आये,
ना ही अच्छे दिन आयेगें।
भरमा अपने वाग्जाल से,
वाह! वाह! अपनी करा रहे हैं।

बेरोजगारों को वेतन भत्ता,
खातों में जमा होगा पैसा।
नौकरी के आसार नहीं हैं,
फाइल पर फाइल जमा रहे हैं।
झूठे-झूठे दिखा के सपने,
सबको मूर्ख बना रहे हैं।

कितने गांवों में अंधियारा,
शौचालय टूटे-फूटे हैं।
विकास-विकास का हो-हल्ला कर,
जनता का धन लुटा रहे हैं।
झूठे-झूठे दिखा के सपने,
सबको मूर्ख बना रहे हैं।

वोटों की राजनीति है गंदी,
बाप-बेटे दोनों प्रतिद्वंदी।
प्रजातंत्र का नाम है कोरा,
बेरोजगार,गरीबी भुना रहे हैं।
झूठे-झूठे दिखा के सपने,
सबको मूर्ख बना रहे हैं।

यह नेता नहीं निजाम बनेंगें,
किसका सुख-दु:ख वो देखेंगें।
धरती पुत्र नहीं,कुर्सी-पुत्र ये,
हक की बात न सिखा रहे हैं।
झूठे-झूठे दिखा के सपने,
सबको मूर्ख बना रहे हैं।

ये सोच-समझ कर देना वोट,
किसकी नीयत में कितना खोट।
जातिवाद-परिवारवाद भूल,
हम प्यारा भारत बना रहे हैं ?
झूठे-झूठे दिखा के सपने,
सबको मूर्ख बना रहे हैं॥

परिचय-राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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