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माँ दरश दिखा जाना…

केवरा यदु ‘मीरा’ 
राजिम(छत्तीसगढ़)
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नवरात में आकर के माँ दरश दिखा जाना।
नवरात चले जाये,माँ तुम न कभी जानाll

पलकों से तेरी मैंया मैं डगर बुहारुँगी,
गंगाजल से अंबे मैं चरण पखारूँगी।
माँ नव नव रुपों में तुम झलक दिखा जाना,
नवरात में आकर के माँ दरश दिखा जाना…ll

मैंने द्वार सजाई है माँ फूलों को बिछाकर के,
बैठी हूँ माँ राहों में कई दीप जलाकर के।
हे मैंहर वाली माँ पायल खनका जाना,
नवरात में आकर के माँ दरश दिखा जाना…ll

लाल चुनरिया माँ हाथों से ओढ़ाऊँगी,
बिंदिया चूड़ी कंगना माँ को पहनाऊँगी।
माता सिंदूर मेरा दमके वर दे जाना,
नवरात में आकर के माँ दरश दिखा जाना…ll

सुनते हैं सदा माते करुणा बरसाती हो,
ये जग तो भिखारी है माँ तू ही इक दाती हो।
ना रोये कोई बेटी,माँ ऐसा वर दे जाना,
नवरात में आकर के माँ दरश दिखा जाना…ll

चरणों में लिपट कर माँ मैं दिल की सुना लेती,
सुन कर मेरी माँ अंबे करुणा बरसा देती।
कुछ माँगे नहीं मीरा चरणों में जगह देना,
नवरात में आकर के माँ दरश दिखा जाना…ll

नवरात चले जाये,माँ तुम न कभी जाना,
नवरात में आकर के माँ दरश दिखा जाना…ll

परिचय-केवरा यदु का साहित्यिक उपनाम ‘मीरा’ है। इनकी जन्म तारीख २५ अगस्त १९५४ तथा जन्म स्थान-ग्राम पोखरा(राजिम)है। आपका स्थाई और वर्तमान बसेरा राजिम(राज्य-छत्तीसगढ़) में ही है। स्थानीय स्तर पर विद्यालय के अभाव में आपने बहुत कम शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में खुद का व्यवसाय है। सामाजिक गतिविधि के तहत महिलाओं को हिंसा से बचाना एवं गरीबों की मदद करना प्रमुख कार्य है। भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए ‘मितानिन’ कार्यक्रम से जुड़ी हैं। आपकी लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल सहित भजन है। १९९७ में श्री राजीवलोचन भजनांजली,  २०१५ में काव्य संग्रह-‘सुन ले जिया के मोर बात’,२०१६ में देवी भजन (छत्तीसगढ़ी में)सहित २०१७ में सत्ती  चालीसा का भी प्रकाशन हो चुका है। लेखनी के वास्ते आपने सूरज कुंवर देवी सम्मान,राजिम कुंभ में सम्मान,त्रिवेणी संगम साहित्य सम्मान सहित भ्रूण हत्या बचाव पर सम्मान एवं हाइकु विधा पर भी सम्मान प्राप्त किया है। केवरा यदु के लेखन का उद्देश्य-नारियों में जागरूकता लाना और बेटियों को प्रोत्साहित करना है। इनके जीवन में प्रेरणा पुंज आचार्यश्रीराम शर्मा (शांतिकुंज,हरिद्वार) व जीवनसाथी हुबलाल यदु हैं। 

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