जबरा राम कंडारा
जालौर (राजस्थान)
****************************
छोटे-बड़ा होने तक,करत सार-सम्हाल,
माँ तो माँ हुआ करती,हरदम रखती ख्याल।
नाराज भी होती है,हक से देती डांट,
सदा दिल पावन निश्छल,नांहिन होती गाँठ।
बुरा तो वो सपने भी,कभी सोचती नांहि,
ईश्वर वो साक्षात है,बसे हृदय के मांहि।
अंबा शारद चंडिका,काली-गौरी मात,
संतति की फिक्र करत है,अष्ट प्रहर दिन-रात।
माँ कल्याणी दयामयी,देती है संस्कार,
माँ से ही शौभायमान तो,होता है परिवार॥