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माता-पिता और गुरु

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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माता-पिता ने पैदा किया,पर दिया गुरु ने ज्ञान,
लाड़-प्यार दिया दादा-दादी ने।
पर गुरु ने दिया अच्छे बुरा का ज्ञान,
उठे हृदय में जब भी विकार।
तब उन्हें गुरु ने कर दिया शांत,
तभी तो कहता हूँ मैं कि
आचार्यश्री हैं इस युग के भगवान।

गुरु ही साँस और गुरु ही आस है,
गुरु ही प्यास और गुरु ही ज्ञान है।
गुरु ही संसार और गुरु ही प्यार है,
गुरु ही गीत और गुरु ही संगीत है
तभी तो लगी गुरु से हमारी प्रीत।

गुरु ही जान है,गुरु ही आलंबन है,
गुरु ही दर्पण और गुरु ही धर्म है।
गुरु ही कर्म और गुरु ही मर्म है,
बिना गुरु के कुछ भी नहीं है
तभी तो हृदय में गुरु ही गुरु बसे हैं।

गुरु ही सपना और गुरु ही अपना है,
गुरु ही जहान और गुरु ही समाधान है।
गुरु ही आराधना और गुरु ही उपासना है,
गुरु ही आदि और गुरु ही अन्त हैै
तभी तो गुरु के प्रति जगा है प्रेम अनंत।

गुरु ही साज और गुरु ही वाद्य है,
गुरु ही भजन और गुरु ही भोजन है।
गुरु ही जप और गुरु ही वंदना है,
गुरु ही प्यारा और गुरु ही न्यारा है
इसलिए तो आत्मा में वो समाया है।

गुरु ही वन्दना और गुरु ही मनन है,
गुरु ही चिंतन और गुरु ही वंदन है।
गुरु ही चन्दन और गुरु ही नंदन है,
तभी तो सब करते गुरु का ही अभिनन्दन॥
(आचार्यश्री विद्यासागर जी को समर्पित)

परिचय-संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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