डॉ.गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’
महापुरा(राजस्थान)
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(रचना शिल्प:मापनी-२१२२ २१२२ २१२२ २१२ ,पदांत-का डर न हो,समांत-अने)
रंग होली में लगें यूँ भीगने का डर न होl
भंग होली में पियें पर डूबने का डर न होl
औपचारिकता लगे होली नहीं ऐसी मने,
रंग में ना भंग हो संग छूटने का डर न होl
चंग ढोलक ताल दे नाचें रहे शालीनता,
तंग बोली से किसी के रूठने का डर न होl
हो जबरदस्ती नहीं नारी न अपमानित कहीं,
रंग ना बदरंग हो अरु लूटने का डर न होl
हो अगर दुश्मन की कोशिश सरहदों पर रंग से,
बैर यूँ भूलें कि रिश्ते टूटने का डर न होl
रंग हो सूखा गुलाबी,लाल,पीला,केसरी,
हों सभी बस रंग काला पोतने का डर न होl
यूँ मने होली कि बंसी चैन की बजने लगे,
नींद यूँ आये कि आँखें मूँदने का डर न होll
परिचय-डॉ.गोपाल कृष्ण भट्ट का साहित्यिक उपनाम ‘आकुल’ है। जन्म तारीख १८ जून १९५५ एवं जन्म स्थान-महापुरा(जयपुर,राजस्थान)है। वर्तमान में कोटा(राजस्थान)में ही आपका स्थाई बसेरा है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,गुजराती,ब्रजभाषा और गुजराती जानते हैं। राजस्थान निवासी डॉ.भट्ट का कार्यक्षेत्र-राजस्थान(तकनीकी वि.वि. से सेवानिवृत्त)ही है।सामाजिक गतिविधि में समाज की गृहपत्रिका के ब्यूरो प्रमुख और साहित्य विधा प्रभारी भी हैं। लेखन विधा-नवगीत,गीतिका, गीत,हिंदी छंद साहित्य एवं वर्ग पहेली है। कृतियाँ-लघु कथा संग्रह-१,काव्य संग्रह-२,नवगीत संग्रह-१,गीतिका शतक(गीतिका संग्रह)-१,नाटक-१ और गीत संग्रह-१,कुंडलिया छंद संग्रह,दोहा संग्रह सहित १५ साझा संकलन
आपके नाम हैं तो सुदामा चरित्र (खंड काव्य),गीता और रामायण पर भाष्य का सम्पादन-२ आदि का सम्पादन भी किया है। १९९३ से देश के प्रमुख समाचार पत्रों में अब तक हजारों हिंदी वर्ग पहेलियाँ और वर्ग पहेली पर छोटी-छोटी पुस्तिकाएं प्रकाशित हुई हैं, तो वर्षों से अनेक पत्र- पत्रिकाओं,ई-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई है। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में भारतीय भाषा रत्न,विद्योत्तमा सम्मान,ठाकुर रवींद्रनाथ ठाकुर साहित्य सम्मान, विद्या वाचस्पति,साहित्य श्री,कलम कलाधर सहित लगभग ३५ प्रमुख हैं। २००९ से ब्लॉग पर निरंतर लिख रहे ‘आकुल’ की विशेष उपलब्धि-फेसबुक समूह व्यवस्थापक व अन्य गतिविधियों में सहभागी हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के विकास के लिए एवं हिंदी छंद साहित्य और विशेष रूप से हिंदी ग़ज़ल की मानसिकता को दूर कर शुद्ध हिंदी छंद साहित्य के सृजन के तहत गीतका लेखन व प्रचार-प्रसार करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-नरेंद्र कोहली हैं। प्रेरणा पुंज-अग्रज पं.गदाधर भट्ट (शिक्षाविद्-निबंधकार-झालावाड़)हैं। विशेषज्ञता-हिंदी छंद साहित्य सृजन, गीतिका एवं हिंदी वर्ग पहेली की है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-
छिन्न-भिन्न हो नहीं संस्कृति अस्मिता की पहचान रहे,
याद दिलाता रहे हमेशा हमको यह अभिमान रहे।
नभ जल थल पर आन है अपनी ध्वज निर्भय गणमान्य रहे,
वेदों से अभिमंत्रित मेरा भारत वर्ष महान रहे।नहीं प्रशासन जागता,नहीं जगे सरकार,
जब तक जनता में नहीं,मचता हाहाकार।
क्या हिंदी के वास्ते,होगा कभी बवाल,
जूँ रेंगेगी कान कब,हे जनता, सरकार।