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रंग एक ही है

रणदीप याज्ञिक ‘रण’ 
उरई(उत्तरप्रदेश)
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१२ वीं कक्षा उत्तीर्ण कर रविन्द्र सोशल मीडिया की दुनिया में प्रवेश कर चुका था। जहाँ उसने देश-दुनिया,रिश्ते, समाज,धर्म,कर्म तथा राजनीतिक मुद्दे जैसी सारी चीजें देख-सुन ली थी और इसी सोशल मीडिया की चकाचौंध भरी दुनिया में रम जाने के कारण रविन्द्र हिन्दू विरोधी पोस्ट और खबरों को देखते-देखते अपने धर्म के प्रति कट्टर होता गया,एवं अपने धर्म की रक्षा करने जैसी बातें करने लगा। समय का चक्र घूमता रहा और उसकी बी.ए. की परीक्षा प्रारम्भ हो गयी। अब रविन्द्र १२वीं वाला रविन्द्र नहीं था,अब वह
कुँवर रविन्द्रसिंह ठाकुर हो गया था। वह अपने अंदाज में तिलक लगाकर गले में भगवा साफा और हनुमानजी की के गदा का लाकेट पहन कर परीक्षा देने विद्यालय जाने लगा।
संयोगवश रविन्द्र जिस बैंच पर बैठा, उसके दूसरे छोर पर बिना मूँछ-दाढ़ी, सिर पर जालीदार टोपी,गले में हरे कपड़े से बंधी ताबीज पहने सलीम नाम का लड़का बैठा था,जो रविन्द्र की ही भाँति परीक्षा देने आया था। सलीम भी रविन्द्र की भाँति सोशल मीडिया से प्राप्त जानकारियों से भरा हुआ था। वह भी धार्मिक रूप से रविन्द्र से कम कट्टर न था। दोनों ही एक-दूसरे को घृणा से भरी हुई नजरों से घूरते हुए बैठे,और दोनों ने बड़बड़ाते हुए अपनी-अपनी गर्दन एक-दूसरे के विपरीत दिशा में घुमा ली। अध्यापक ने सभी छात्रों को प्रश्न-पत्र और उत्तरपुस्तिका वितरित कर दी। रविन्द्र और सलीम दोनों ने ही अपने पैन,पटरी इत्यादि को बैंच के बीचों-बीच रख दिया। दोनों अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखने लगे और लिखते ही रहे। दोनों ने एक-दूसरे की तरफ जरा-सा भी न देखा। प्रश्न व मुख्य शीर्षक काले पैन से लिखा जाता है तो दोनों ही इसका प्रयोग कर रहे थे। इस्तेमाल करने के बाद दोनों ही अपने अपने पैनों को पुनः बैंच के बीच में रख रहे थे। संयोग की एक बात और थी कि दोनों के प्रश्न व शीर्षक (हेडिंग) लिखने वाले पैन एक ही कम्पनी के ही थे,अतः दिखने में एक जैसे ही थे। दोनों ही अपनी-अपनी उत्तरपुस्तिका में लिखने में मगन रहे..। परीक्षा का समय खत्म होने से पूर्व ही दोनों ने अपने-अपने प्रश्नों को हल कर लिया था। जैसे ही लिखना बन्द किया तो दोनों ने सोचा कि “मैंने तो सारे प्रश्नों को हल कर लिया है। देखता हूँ कि ये बगल वाला मनहूस कुछ कर पाया कि नहीं…।” जैसे ही दोनों एक-दूसरे की तरफ देखते हैं तो पाते हैं कि दोनों के काले पैन आपस में बदले हुए थे। चूंकि,रविन्द्र के पैन में गुलाबी और सलीम के पैन में बैंगनी ढक्कन लगा हुआ था,अतः इससे समझा कि मेरा पैन उसके हाथ में है। तब दोनों ने एक-दूसरे की तरफ पैन खिसका दिए और खिसकाते समय दोनों के होंठ हिल रहे थे। मानों,एक-दूसरे को गालियां दे रहे हों,कोस रहे हों। इसके बाद दोनों ने अपनी उत्तरपुस्तिका में यह देखने का प्रयास किया कि वह लाइन कौन-सी है,जिससे मैंने उस मनहूस के काले पैन से गलती से लिख दिया…। दोनों ही फिर से रंगों के फेर में उलझ गए और काले को काले में ही बाँटने लगे। शायद काली स्याही उत्तरपुस्तिका की बजाय उन दोनों के दिमाग पर अँधेरा कर चुकी थी,और उसी बात को छुपा रही थी कि खून का रंग सबका लाल ही होता है..।

परिचय–रणदीप कुमार याज्ञिक की जन्म तारीख १३ मई १९९५ है। साहित्यिक नाम `रण` से पहचाने जाने वाले श्री याज्ञिक वर्तमान में वाराणसी में हैं,जबकि स्थाई बसेरा उरई(जालौन)है। वर्तमान में एम.ए (द्वितीय वर्ष) के विद्यार्थी और कार्यक्षेत्र भी यही है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत अपने लेखन के माध्यम से विचारों का सम्प्रेषण करते हैं। इनकी लेखन विधा-गीत,कविता, कहानी और लेख है। प्रकाशन के तहत वर्तमान में कार्य(बुन्देखण्ड से संबंधित इतिहास पर)जारी हैl रण की लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त रूढ़ियों को तोड़ना,अंधविश्वास को दूर करना, नागरिक बोध की समझ विकसित कराने के साथ-साथ निष्पक्ष सोच की मानसिकता को पैदा कराने का प्रयास है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-माता-पिता,शिक्षकगण तथा मित्रगण हैं।भाषा ज्ञान-हिन्दी,बुन्देलखण्डी एवं अंग्रेजी का रखते हैं। रुचि-लेखन,खेल और पुस्तकें पढ़ने में है।

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