जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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मैंने एक फूल मांगा था उसने तो गुलदान दे दिया।
दोहे का वर मांग रहा था पूरा छंद विधान दे दिया॥
मलयानिल-सा सोया था मैं सपनों के गहरे सागर में,
लेकिन अब अहसास हुआ है सिंधु भरा उसने गागर में।
अर्पित कर दी पूजा थाली मैं वो बड़भागी वन माली,
लोक गीत गाने वाले को कविता का वरदान दे दिया।
मैंने एक फूल मांगा था उसने तो गुलदान दे दिया…॥
वो अंनत करुणा का सागर मैं गंवार मूढ़ अभिमानी,
भू मण्डल के ओर-छोर पर उससे बड़ा कौन है दानी।
मेरी अभिलाषा थी छोटी,उसकी परिभाषाएं मोटी,
शब्दों की छोटी मूरत को छंदों का पाषाण दे दिया।
मैंने एक फूल मांगा था उसने तो गुलदान दे दिया…॥
मैं था एक अनाड़ी मानस कविता राह दिखाई उसने,
मेरे इस नीरस जीवन में रस की चाह जगाई उसने।
सारे जग का दर्पण उसमें,सारे जग का तर्पण उसमें,
एक गाँव की मांग रखी थी पूरा हिंदुस्तान दे दिया।
मैंने एक फूल मांगा था उसने तो गुलदान दे दिया…॥
यदि वो चाहे तो फूलों की शैया पर भी मानस रोये,
वो चाहे तो काँटों पर भी लंबी गहरी नींद सँजोये।
जब वो चाहे भाग्य जगा दे पानी में भी आग लगा दे,
‘हलधर’ जैसे देहाती को साहित्यिक सम्मान दे दिया।
मैंने एक फूल मांगा था उसने तो गुलदान दे दिया…॥