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विपदा भू पर आई

मालती मिश्रा ‘मयंती’
दिल्ली
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विश्व धरा दिवस स्पर्धा विशेष………

धरती से अम्बर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।
दसों दिशाएँ हुईं ष्रदूषित,
विपदा भू पर आई।
नदियाँ-नाले एक हो रहे,
रहे धरा अब प्यासी।
नष्ट हो रही हरियाली भी
मन में घिरी उदासी।
पीने का पानी भी बिकता,
बाजारों में भाई…
धरती से अम्बर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।

हरियाली की चादर ओढ़े,
थी धरती मुस्काती।
लहर-लहर निर्मल धलधारा,
देख सदा हरषाती।
वन-कानन अरु पर्वत ऊँचे,
गौरव-भू कहलाते।
मस्त पवन फिर दसों दिशा में,
नित सौरभ फैलाते।
मधुर भोर की शीतल बेला
आज पड़े न दिखाई…
धरती से अम्बर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।

उन्नति की खातिर मानव ने
जंगल-नदियाँ पाटे।
हरियाली को छीन धरा से,
नकली पौधे बाँटे।
जहर घोलकर अब नदियों में,
बनाये कारखाने।
धरती का सौंदर्य मिटा कर,
मन ही मन हरषाने।
अपने सुख खातिर मानव ने,
भू की खुशी मिटाई..।
धरती से अम्बर तक देखो,
घटा धुएँ की छाई।

परिचय-मालती मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘मयंती’ है। ३० अक्टूबर १९७७ को उत्तर प्रदेश केसंत कबीर नगर में जन्मीं हैं। वर्तमान में दिल्ली में बसी हुई हैं। मालती मिश्रा की शिक्षा-स्नातकोत्तर (हिन्दी)और कार्यक्षेत्र-अध्यापन का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप साहित्य सेवा में सक्रिय हैं तो लेखन विधा-काव्य(छंदमुक्त, छंदाधारित),कहानी और लेख है।भाषा ज्ञान-हिन्दी तथा अंग्रेजी का है। २ एकल पुस्तकें-अन्तर्ध्वनि (काव्य संग्रह) और इंतजार (कहानी संग्रह) प्रकाशित है तो ३ साझा संग्रह में भी रचना है। कई पत्र-पत्रिकाओं में काव्य व लेख प्रकाशित होते रहते हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा,हिन्दी भाषा का प्रसार तथा नारी जागरूकता है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-अन्तर्मन से स्वतः प्रेरित होना है।विशेषज्ञता-कहानी लेखन में है तो रुचि-पठन-पाठन में है।

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