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वृद्धाश्रम की व्यथा

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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‘ओल्ड एज होम’ का अर्थ होता है, ‘वृद्धाश्रम’ यानी, वृद्धों का आश्रम,अर्थात जहां पर एकसाथ कई वृद्ध स्त्री और पुरुष एक घर में एकसाथ रहते हों। वृद्धाश्रम कोई प्रकृति की देन नहीं है,बल्कि यह उन वृद्धों के वयस्क और जवान पुत्रों,पुत्रवधू और अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा तिरस्कृत वृद्धों का समाज है। उनके अनुसार वृद्ध माता-पिता हमारे सभ्य समाज में फिट नहीं बैठते हैं।
यदि वे वृद्धाश्रम में नहीं रखते हैं,तो वे उन्हें २-३ नौकर-चाकर प्रदान करके किराए के घर में रखते हैं, लेकिन यह वृद्धाश्रम के ही बराबर है,क्योंकि उसमें भी आप अपनी क्षमता के अनुसार एक सुसज्जित कमरा, सेवक-सेविका ले सकते हैं,भोजन,दवा और अन्य सुविधाओं के खर्च का भुगतान करके,पर यह उनके ‘घर’ के बराबर नहीं हो सकता, क्योंकि उनके साथ रहने वाले अपने परिवार के सदस्य नहीं हैं। वे हमेशा व्यथित महसूस करेंगे कि एक ‘बड़े परिवार’ के बावजूद उनके पास ‘कोई परिवार नहीं’ है।
यह भारत जैसे देश की विडंबना है कि जिस धरती पर माता-पिता को भगवान का स्वरूप मानते हैं, उसी धरती पर यह स्थिति दयनीय है। यह हमारे समाज की संस्कृति के बिल्कुल विपरीत है। कुछ संभ्रांत परिवार के लोग अपने माता-पिता को खुद ही वृद्धाश्रम छोड़ कर आते हैं,जबकि कई माता-पिता ऐसे हैं जिनकी हालत इतनी बुरी होती है कि उनको घर से निकाल कर सड़कों पर दर-दर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है।
हमारा समाज इतना अपंग और कमजोर हो गया है कि,केवल वे २ प्राणी जिनको कहने के लिए मात्र माता-पिता कहते हैं,उनकी देखभाल नहीं कर सकते। उनकी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते। इस ढलती उम्र में उनको किसी भी बड़ी चीज की कोई ख्वाहिश नहीं रहती,सिवाय अपने बच्चों के साथ रहने की,उनका प्यार और अपनापन पाने की। एक संरक्षण पाने की,अपने बच्चों द्वारा -जो माता-पिता ने अपने बच्चों को दिया था।
हमारे देश की नौजवान पीढ़ियों को यह शिक्षा कौन देगा कि,वे उनके अपने ही माता-पिता हैं,जो अपने बच्चों को जरा-सी चोट लग जाने पर उनका दिल छलनी हो जाता था। अपने बच्चों के जरा से परेशान होने पर उनकी रातों की नींद उड़ जाती थी। माता-पिता अपनी सारी जिंदगी बच्चों का भविष्य संवारने में लगा देते हैं,बिना किसी लालच के। अगर लालच भी होता है,तो ऐसा कि,उसमें बच्चों का ही हित होता था,मगर आजकल के बच्चों में इतनी शक्ति नहीं है कि माता-पिता के कुछ गिने-चुने वर्षों की वह ठीक ढंग से देखभाल कर सकें।
आजकल मनुष्य इतना भौतिकवादी हो गया है कि, केवल भौतिक सुखों की कामना करता रहता है। इन भौतिक सुखों की उपस्थिति में अपने बीवी-बच्चों के साथ दिन गुजर-बसर करना चाहता है। ऐसा नहीं है कि वे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर सकते हैं। कमी उनके विचारों में आ गई है । उनके सोचने की शक्ति संकीर्ण हो गई है। वह अपने इन्हीं भौतिक सुखों के आगे अपने माता-पिता को रोड़ा समझने लगते हैं। उनकी बुढ़ापे की बीमारियों को वे झेलना पसंद नहीं करते हैं। यही बच्चे यह भूल जाते हैं कि बचपन में न जाने कितने ही बीमारियों को उनके माता-पिता ने रोते-हँसते दूर किया था। उनके ऊपर आने वाली हर मुश्किल को दूर किया था। उनकी ना जाने कितनी ही मुश्किलों के बावजूद उनको अपने सीने से लगा कर रखा था।
हर मनुष्य को बस इतना ही सोचने की जरूरत है कि,अपने बच्चों में ही अपने बूढ़े माता-पिता को देखें। हमें एहसास होगा कि हमारे बच्चों से काफी कम जरूरत हमारे बुजुर्ग माता-पिता को है। जब हम अपने बच्चों को हर वह चीज देने के लिए इच्छुक होते हैं,जिनकी उन्हें जरूरत है तो हम अपने माता-पिता को भी वे जरूरतें अवश्य दे सकते हैं।
बाकी बातें बस अपने मन को बरगलाने के लिए होती है,जैसे-उनकी हम देखभाल नहीं कर सकते। हमारे पास उनका ध्यान रखने के लिए समय नहीं है वगैरह-वगैरह। हमें अपनी अंतरात्मा को जगाने की जरूरत है। जब हम उनकी जिंदगी की सारी जमा पूंजी रुपया-पैसा लेने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं, तो ठीक वैसे ही तत्परता उनको संरक्षण देने में भी होनी चाहिए।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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