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व्यर्थ न होगी कुर्बानी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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फिर एक उरी,उससे भी बड़ी,
बेहद दर्दनाक ख़ौफनाक
राष्ट्रीय अस्मिता की सीने को,
चीरती लहुलूहान करती हुई
भारत माँ के शौर्यवीरों के,
खून से रक्तरंजित पुलवामा।

मैं हताश,क्लान्त निःशब्द हूँ बयां,
दुःखार्त है रोम-रोम तमतमाया
प्रतिकार को समुद्यत उस आदमख़ोरों,
इन्सानियत के दुश्मन कातिलों से
आख़िर कब तक निज उदारता,
सौम्यता,सहिष्णुता के आँचल तले
अमन के पैरोकार,शान्तिदूत बने,
भाईचारे,बन्धुता हमदर्दी के पैगामवाहक
कब तक सहेंगे हम कायराना,
कातिलाना हरकतें आतंक की।

कब तक लुटेगी कोख़ उन माँ की,
जो बड़ी मुराद से अपने
क्षीरपालित जना था पूत को,
आख़िर कब तक उजड़ेंगी माँगें
उन गृह वधूओं की जिसने बनाया था,
खुशी ओ ख्वावों का सोपान जिंदगी का।

क्या होगा उनका जिसने अभी,
सीखा भी न था जीवन पथ पर चलना है कैसे
यतीम,बेबस बेटियाँ जिसने संजोए थे,
अपने हाथों में मेंहदी रचाने के खूबसूरत सपने
कौन होगा सहारा उन बुजुर्गों का,
जिन्होंने जीवनभर सँवारा अपने लाल को।

श्रवण कुमार बन खेवनहार होगा,
पगडण्डी बने जिंदगी के अंतिम पल
बड़े अरमान व शान से भेजा अपनी औलाद को,
जीवनसाथी वतन की ख़ातिर करने हिफ़ाजत
पलभर भी न लगा,लुट गए अफ़साने,
कसीदे जो गढ़े थे सुकून से जिंदगी के
आज फिर छाया मातम अमावस रात की तरह,
मौत की विकराल काली रात
स्तब्ध,निरापद,गमगीन अवसादन से गह्वरित,
भींगी आँसुओं से भरी आँखें,
सिसकता,कराहता,फफकता सारा मुल्क।

नतवनत,कृतज्ञ,सादर ऋणी हम सभी,
उन बलिदानी शौर्य सपूतों की शहादत के
क्रन्दित हो रही होगी भारत माँ,
आज ख़ोकर अपने सीमा प्रहरी
अहर्निश निरत कर्मठ सपूतों को,
माँग रहा जन-जन वतन बदला
हर एक कुर्बानी का मुल्क पे।

है वक्त का तकाज़ा नज़ाकत या यूं कहें,
नेस्तनाबूत करने नाज़ायज मंसूबे पाकपालित
पोषित नापाक साज़िश ए आतंकी जड़ को,
लिखना होगा काल के कपाल पर
पड़ोसी मुल्कीयत के नापाक नक्शे जमीं,
जग को बताएँ न केवल हैं हम सशक्त
समृद्ध युद्ध कौशल पुरोधा अजातशत्रु,
करके दिखाएं वास्तविक धरातल महाबल
पुरुषार्थ ओज व पराक्रम ज़मीर ए ज़मीं पर,
कर दो मिट्टीपलीत मिटा दो नामों-निशां धरा से।

पोंछ डालो आँसुओं को मुल्क ए परस्ती,
जनों के जिन्हें दिए नापाक जख्मों सितम
कर्जदार है पूरा वतन साश्रु श्रद्धावनत,
दे रहा श्रद्धाञ्जलि कर शत्-शत् नमन।

हो शहीद स्वनामधन्य अमरता का आलोक बन,
जीवन सफल यायावर राष्ट्र पथ के
स्वर्णाक्षरों में लिखेगा तव वीरगाथा वीरगति।
प्रेरक बनेंगे आगम्य पथ के समागत रणबाँकुरे,
व्यर्थ न होंगी आपकी कुर्बानियत ए मुल्क पे॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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