डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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सत्ता का संग्राम छिड़ा है,
लोकतंत्र का पर्व है आया
पाँच साल के बाद नेता,
‘मत’ मांगने फिर घर आया।
पाँच साल जो नजर ना आए,
घूमने लगे अब हाथ जोड़कर
करने लगे विकास का वादा,
कहने लगे ‘हम सबसे बढ़कर।’
साथ चलेगी अब उनकी टोली,
और भरी हुई पैसों से झोली।
कहीं बँटेगी साड़ी-मोबाइल,
और लुटेगी जनता भोली।
कहीं वादों की बरसात करेंगे,
शतरंज-सी फिर चाल चलेंगे
लुभावनी बातों में आकर,
हम ना उनके जाल फँसेंगें।
सत्ता में आने की खातिर,
वो क्या-क्या ढोंग रचाते हैं
अपना उल्लू सीधा करने को,
बहुरूपिए तक बन जाते हैं।
एक-एक ‘मत’ है बड़ा कीमती,
निश्चित करती जीत और हार
सोंच-समझकर बटन दबाना,
आए ना कोई झूठा-मक्कार।
सत्यनिष्ठा से जिसका नाता,
समस्याओं का करे निदान।
राष्ट्रहित और जनहित सोंचे,
सोंचो-समझो, करो मतदान॥