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सफ़र

जबरा राम कंडारा
जालौर (राजस्थान)
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चलता रहता है सफर,जीवन के पल चार।
प्रतिपल सोच-विचार का,दिन में बार हजार॥

सोने-जगने का सफर,करने का कुछ काम।
सैर-सपाटे घूमने,छुटपुट काम तमाम॥

खाने-पीने और सब,रहत चलत हर रोज।
सफर कई हैं भांत के,मिले करे ज्यों खोज॥

घड़ी दिवस पल मास का,साल सदी के पार।
सफर अवधि सम ही चले,समझो करो विचार॥

सफर पूर्ण कब होत है,इससे सब अनजान।
जीवन के इस राह का,नहीं किसी को ज्ञान॥

सफर सुचारू बन चले, ऐसा करो प्रयास।
जन्म-मृत्यु का ये सफर,है समझो तो खास॥

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