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सिसकता किसान

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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गर्मी की इस मार में,रोते आज किसान।
बिलख रहे हैं भूख में,धरती के भगवानll

देखो हाहाकार है,सिसक रहे हैं लोग।
धरती सूखी खेत है,घेर रहे हैं रोगll

तपती धूप बढ़े यहाँ,कौन करे अब काम।
खेतों में दर्रा फटे,बंजर हुए तमामll

जीने को मजबूर है,सिसक रहे हैं आज।
कर्ज भार सर पर लदे,कौन सुने हैं राजll

ऐसी व्यथा किसान की,पूछो इनका हाल।
मंडराता रहता सदा,सिर पर इनके कालll

 

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