कुल पृष्ठ दर्शन : 348

सीता के बेदाग चरित्र पर तो सियासत का दागी दांव न खेलें…!

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

******************************************************************

कहावत है ‘सूत न कपास,जुलाहों में लट्ठमलट्ठा।‘ श्रीलंका स्थित दिवुरमपोला में सीता माता का मंदिर बनवाने को लेकर मध्यप्रदेश में दो राजनीतिक जुलाहों सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच कुछ इसी तरह का लट्ठमलट्ठा छिड़ा है। श्रीलंका में सीता एलिया वह स्थान है,जिसके बारे में मान्यता है कि रावण ने यहीं सीताजी को बंधक बना कर रखा था,जबकि दिवुरमपोला के बारे में कहा जाता है कि सीताजी ने यहीं अग्नि परीक्षा दी थी। लिहाजा इसी जगह पर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने २०१० में सीता माता का मंदिर बनाने का ऐलान किया और उसी साल मंदिर का भूमिपूजन भी कर डाला था। यह मंदिर करीब ३ करोड़ रू. की लागत से १२.८ हेक्टेयर में बनना था। इस काम के लिए मप्र सरकार ने श्र‍ीलंका सरकार को १ करोड़ रू. भी दिए,लेकिन यह मंदिर भी अयोध्या में राम मंदिर की तरह आज तक नहीं बन पाया। वैसे मंदिर के भूमिपूजन के बाद भी शिवराज ८ साल तक सत्ता में रहे। अब सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अपने नरम हिंदुत्व एजेंडे के तहत मप्र में रामवन गमन पथ और श्रीलंका में सीता मंदिर निर्माण के मुद्दे को यह कहकर हवा दी कि,राम भक्तों’ के अधूरे कामों को वह पूरा करेगी। राज्य के धार्मिक न्यास और धर्मस्व मंत्री पी.सी.शर्मा ने कहा कि उनकी सरकार किसी अधिकारी को भेजकर पहले इस बात की जांच कराएगी कि दिवुरमपोला में सीता मंदिर बनना चाहिए या नहीं। इस बयान से भड़के शिवराजसिंह ने ट्वीट किया कि ‘सारा देश,सारी दुनिया जानती है कि सीताजी लंका में अशोक वाटिका में रखी गईं थी और उन्होंने अग्नि-परीक्षा भी दी थी। मैं(मप्र के सीएम के रूप में)जब श्रीलंका गया था तो मन में भाव आया कि इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण होना चाहिए। आश्चर्य है कि यह कमलनाथ सरकार अब ‘तथ्यों को जाँचने’ की बात कर रही है।‘ शिवराज ने कटाक्ष किया ‍कि ‘कमलनाथ सरकार के अफसर श्रीलंका जाकर 'सर्वे' कराकर सत्यापित करेंगे कि माता सीता का अपहरण हुआ था या नहीं! मित्रों,इससे ज़्यादा हास्यास्पद कुछ हो सकता है क्या ? पूरी दुनिया जिस सत्य को जानती है,उसकी जाँच की बात करके कमलनाथ सरकार ने करोड़ों लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाई है!’ इसी के साथ श्री चौहान ने एक वीडियो भी टैग किया,जिसमे दावा किया गया है कि उन्होंने मंदिर निर्माण के बारे में श्रीलंका सरकार से सारी मंजूरियां भी ले ली थीं। वस्तुनिष्ठ भाव से देखें तो मंत्री पी.सी. शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज अपनी-अपनी जगह सही हैं। दोनों का मूल मकसद भी एक है। जहां तक दिवुरामपोला की बात है तो सिंहली भाषा में इसका अर्थ है-शपथ स्थली। श्रीलंका के लोग निश्‍चित ही इस जगह को पवित्र मानते हैं,इसलिए वहां शपथ लेने का चलन है। रहा सवाल श्रीलंका को रामायण की लंका मानने का तो अधिकांश श्रीलंकावासी इसे नहीं मानते। रामायण से जुड़े प्रसंगों के आधार जो स्थान भारतीय हिंदुओं की दृष्टि से पवित्र मानकर चिन्हित किए गए हैं,उसके पीछे श्रीलंका सरकार का भाव यही है कि चूंकि आपकी इनमें श्रद्धा है,इसलिए इन स्थानों का पर्यटन स्थल के रूप में विकास किया जा रहा है,ताकि लोग आएं और दर्शन करें। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को मजबूत करें। आपकी श्रद्धा में हमारी भी श्रद्धा। इसी के साथ यह बात भी सही है कि,जब हिंदू पर्यटक सीता एलिया पहुंचते हैं तो उनके मन में सीता और राम के प्रति आस्था उमड़ पड़ती है। तर्क से परे मन सहज भाव से ‘श्री रामचंद्र कृपालु भज मन...’ गा उठता है। लोग वह स्थान देखकर भावुक हो जाते हैं। बिना यह सोचे कि वहां के मूल निवासियों के लिए इसका क्या और कितना महत्व है। पी.सी. शर्मा की बात इसलिए भी सही है,क्योंकि जब रामायण की लंका को ही अभी निर्विवाद तरीके से खोजा नहीं जा सका है तो केवल आस्था के दम पर वहां सीता माता मंदिर बनाने का क्या मतलब ? सिवाय इसके कि हम ऐसा मानते हैं तो तुम्हें भी मानना पड़ेगा। शिवराज जिसे ‘दुनिया’ बता रहे हैं,उसमें वह हमारा पड़ोसी द्वीप देश श्रीलंका भी शामिल है,जहां की ८० फीसदी आबादी बौद्ध है तथा जो राम को भगवान के बजाए केवल अयोध्या के राजा के रूप में जानती और मानती है। सीता का महत्व भी उनके लिए राम की पत्नी के रूप में है। हालां‍कि,राक्षस राज रावण द्वारा सीता के अपहरण को वो भी अनैतिक मानते हैं,लेकिन वह सब एक महाकाव्य के रूप में। ऐसे में वहां कोई मंदिर बने-न बने,इससे उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह श्रीलंका में रह रहे हिंदुओं में अधिकांश शैव हैं,जिनकी विष्णु के अवतारों में विशेष आस्था नहीं है। इसमे एक दिक्कत और भी है। बताया जाता है कि,जिस जमीन पर यह मंदिर प्रस्तावित है,वह किसी बौद्ध मठ की है। पहले तो मठ मंदिर के लिए जमीन देने तैयार नहीं था,बाद में राजी हुआ। वहां सीता मंदिर न बनने के पीछे श्रीलंका की राजनीतिक अस्थिरता और प्रस्तावित मंदिर के रखरखाव को लेकर भी विवाद बताया जाता है। पहले मप्र सरकार खुद यह काम करना चाहती थी,लेकिन बाद में यह जिम्मा बौद्ध मठ को देने पर बात बनी। बहरहाल,जहां तक सीता माता का मंदिर बनाने की बात है तो मंदिर बने न बने,लेकिन मंदिर बनाने को लेकर राजनीतिक चरणामृत प्राशन का खेल शुरू हो गया है। सवाल यह है कि कमलनाथ सरकार के अधिकारी वहां जाकर क्या जांच करेंगे ? जिस मुद्दे पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकार आज तक किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके हैं,वहां एक सरकारी अफसर श्रीलंका जाकर सीता के बारे में क्या नया खोज कर लाएगा ? अर्थात यह केवल मंदिर के मुद्दे पर सियासी खेल खेलना है। श्रद्धा और आस्था की कोई सीआईडी जांच तो हो नहीं सकती और न ही पौराणिक बातों को चुनौती देने से कुछ खास हासिल होना है। रही बात शिवराज की,तो उन्होंने उसी मुद्दे पर कमलनाथ सरकार को घेरना शुरू किया है,जिसका निदान खुद उनके पास भी नहीं था। इस पूरे प्रकरण में अगर अवमानना हो रही है तो वह उस सीता माता की,जिसे अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। स्त्री के प्रति पक्षपाती सोच का शिकार होना पड़ा। अगर कमलनाथ सरकार केवल पूर्ववर्ती शिवराज सरकार को हिंदुत्व के मोर्चे पर खुला करना चाहती है तो करे,लेकिन इसके लिए सीता जैसे पावन चरित्र को हथियार न बनाए। वैसे भी मंदिरों का ‍निर्माण भक्तों की अडिग और प्रश्नातीत आस्था के कारण ही होता है। उसमें तथ्यों का तड़का लगाने की कोशिश शरारत ज्यादा लग सकती है,या तो पौराणिकता को पूरी तरह खारिज करें या फिर उसे उसी तरह बहने दें,जैसा वह बहना चाहती है। यूँ हिंदुओं की आस्था के दो ही किनारे हैं,है या नहीं। सीता,देवी के रूप में मान्य हो या न हो,एक बेदाग स्त्री के रूप में उनका चरित्र अजर-अमर है। और ‍फिर निष्कलंक चरित्र और देवता होने में फर्क ही कितना है ?
<blockquote><span style="color: #ff0000;"><span style="color: #0000ff;"><strong>परिचय-</strong></span>अजय बोकिल की जन्म तारीख १७ जुलाई १९५८ तथा जन्म स्थान इंदौर हैl आपकी शिक्षा-एमएससी( वनस्पति शास्त्र) और एम.ए.(हिंदी साहित्य)हैl आपका निवास मध्यप्रदेश के भोपाल में हैl पत्रकारिता का ३३ वर्ष का अनुभव रखने वाले श्री बोकिल ने शुरूआत इंदौर में सांध्य दैनिक में सह-सम्पादक से की है। इसके बाद से अन्य दैनिक पत्रों में सह-सम्पादक, सहायक सम्पादक और फिर सांध्य दैनिक में सम्पादक रहकर वर्तमान में एक अन्य सांध्य दैनिक में वरिष्ठ सम्पादक के रूप में लेखन यात्रा जारी हैl आपकी लेखन विधा मुख्य रूप से आलेख और स्तम्भ ही हैl पं.माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि में श्री अरविंद पीठ पर शोध अध्येता के रूप में कार्यरत हैं,साथ ही
अरविंद की संचार अवधारणा’ पुस्तक प्रकाशित हुई है। प्रकाशन रूप में आपके खाते में कहानी संग्रह ‘पास पड़ोस’ सहित कई रिपोर्ताज व आलेख हैं। मातृभाषा मराठी में भी लेखन करने वाले श्री बोकिल दूरदर्शन,आकाशवाणी तथा विधानसभा के लिए समीक्षा लेखन कर चुके हैं। पुरस्कार के रूप में आपको स्व.जगदीश प्रसाद चतुर्वेदी उत्कृष्ट युवा पुरस्कार,मप्र मराठी साहित्य संघ द्वारा जीवन गौरव पुरस्कार,मप्र मराठी अकादमी द्वारा मराठी प्रतिभा सम्मान व कई और सम्मान भी दिए गए हैं। विदेश यात्रा के तहत समकालीन हिंदी साहित्य सम्मेलन कोलम्बो( श्रीलंका)में सहभागिता सहित नेपाल व भूटान का भ्रमण किया है।

Leave a Reply