कुल पृष्ठ दर्शन : 263

You are currently viewing सेवा बनाम रिश्वत से निकला दोहरा चरित्र

सेवा बनाम रिश्वत से निकला दोहरा चरित्र

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
******************************************

पैसे का लाभ लेकर सवाल पूछने के मामले में तृण मूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा को लोकसभा से निष्काषित किए जाने से देश के सामने चुने हुए जनप्रतिनिधियों का दोहरा चरित्र फिर उजागर हुआ है।
राजनीति बनाम देशसेवा के लिए नेताओं का चरित्र महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह उनकी नैतिकता, ईमानदारी और सामाजिक सजगता को दर्शाता है, लेकिन जब यही ‘आदर्श’ कहे जाने वाले नेतागण ऐसा कारनामा करते या कराते हैं तो ‘यकीन’ शब्द से भरोसा टूट जाता है। हालांकि, सारे ऐसे नहीं होते हैं, पर किसी एक के अ-चरित्रशील होने से आमजन का दल, व्यवस्था और सरकार से भी विश्वास कम होना स्वाभाविक और गंभीर विषय है।
लोकसभा अध्यक्ष ने इनके खिलाफ जो कारवाई की है, उसके बाद दोष अनुसार कानूनी कारवाई भी की ही जानी चाहिए, ताकि अन्य के लिए ऐसे मामले और फैसले नजीर बन सकें।
आज जब हम किसी नेता और निर्वाचित जनप्रतिनिधि की साख की बात करते हैं तो यही बात सबसे खास होती है कि वो सांसद या विधायक के नाते सेवा के मंदिर में अपनी जनता और देश के प्रति कितना ईमानदार है, साथ ही चरित्र और ‘आर्थिक’ चरित्र कैसा है। अगर वह अपने कार्यों में निष्ठापूर्ण रहता है और सार्वजनिक सेवा के लिए समर्पित रहता है तो उसकी यह छवि उसे दल के दलदल से बाहर निकालकर जन मिसाल बनाती है, क्योंकि एक विश्वसनीय व शक्तिशाली नेता सामाजिक चरित्र के माध्यम से ही लोगों का विश्वास जीतता है और समृद्धि की दिशा में सबका नेतृत्व तथा मार्गदर्शन करता है। इसके उलट जब वह रिश्वत लेता है अथवा किसी भी तरह का भ्रष्टाचार करते हुए पकड़ा जाता है तो यह बात समाज के सामने पूरी व्यवस्था को कलंकित करती है। आखिर सवाल तो यह है कि, इतनी बड़ी व्यवस्था का हिस्सा बनने के बाद भी जब कोई समाज या संगठन में नैतिकता को बिखेरता है तो उसके लिए दोषता अनुसार कानून से परे जाकर भी क्या सजा तय की जानी चाहिए ?
पूरे तंत्र और समाज को भी यह चिंतन करना पड़ेगा कि, जिन्हें इतना सोंच कर चुना गया है, आखिर वो भी देश के मंदिर में चंद रुपयों की खातिर..! ऐसे विशेष लाभ लेने के लिए ऐसे प्रतिनिधि जब अपने पद का गलत इस्तेमाल करते हुए अनैतिक या अनुभवशील तरीकों से शक्ति का उपयोग करते हुए ऐसे काम करते हैं तो दल और व्यवस्था की जिम्मेदारी बनती है कि इसके लिए भी कोई ईमानदार ‘आचार संहिता’ बनाई जाए और सख्ती से उसका उपयोग भी किया जाए।
रिश्वत लेकर संसद में सवाल सवाल करने के बाद दोषी साबित जनप्रतिनिधि अब खुद को भले ही बेकसूर बताएँ, पर यह बात हजम नहीं होती है, क्योंकि सम्बंधित समिति ने पूरी प्रक्रिया का पालन किया है, फिर ही निष्कासन किया गया है। प्रक्रिया अनुसार रिश्वत का प्रकरण सामने आने और प्रमाणित होने के बाद विशेष परिस्थितियों में संसद या राष्ट्रपति द्वारा सांसद का निष्कासन किया जाता है, जो उन गंभीर उल्लंघनों के लिए होता है, जैसे-नैतिकता, भ्रष्टाचार या किसी अन्य कानूनी-सामाजिक अपराध के कारण।
आजादी के इतने साल बाद भी यह नासूर है, किन्तु हमें समझना और समझाना भी होगा कि, देश को विकास के पथ पर चलाना है तो भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को समूल नष्ट करना ही पड़ेगा। इसे दलगत राजनीति और अपने-पराए का अंतर किए बिना मिटाना होगा, वरना यह देश को दीमक की भांति खा जाएंगे। इस पर सख्त कदम और कारवाई किए बिना यह सम्भव ही नहीं है। कानूनी और सामाजिक चिंतन की कारवाई तो आवश्यक है ही, क्योंकि यह नासूर समाज में विशेषकर न्यायिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को कमजोर एवं विकास को भी बाधित करता है।
समाज व देश के कर्णधारों को समझना होगा कि, नई पीढ़ी के सामने आप क्या रख रहे हो ? क्योंकि, रिश्वत से समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इससे अनैतिक प्रथाओं का प्रोत्साहन होता है और यह सार्वजनिक सेवाओं और प्रणालियों को कमजोर करती है। ऐसे ही जब पुलिस और अदालतों की व्यवस्था में रिश्वत घुसती है तो न्याय प्रणाली को दुर्बल बना देती है। इससे एक सीमा तक यह उदाहरण भी स्थापित होता है कि, सफलता के लिए अनैतिक रास्ते चुनना स्वाभाविक है। इससे समाज में भ्रष्टाचार और बढ़ता है एवं इसे शिष्टाचार मान लिया जाता है।
बड़ी विडम्बना है कि, आज भी सेवा और रिश्वत की जोड़ी बरकरार है, जबकि दोनों ही सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित हैं। इनका उपयोग और प्रभाव अलग होता है, क्योंकि सेवा में सामाजिक कल्याण और सार्वजनिक हित होता है, जबकि रिश्वत अनैतिक तरीके से व्यक्तिगत लाभ के लिए वसूली जाती है। बरसों से इतिहास में सेवा समाज में सकारात्मक परिवर्तनों को प्रोत्साहित करती रही है, जबकि रिश्वत ने हमेशा ही ईमानदार का मनोबल तोड़ा है एवं सामाजिक न्याय और विकास पर चोंट की है।
दलगत राजनीति से हटकर बड़ा सवाल यह है कि, अगर नेतृत्वकर्ता ही आदर्शों की सीढ़ी तोडे़ तो आने वाली पौध का क्या होगा ? कारण कि, जननेता यानि प्रमुख का आमजन पर गहरा और महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। जैसे एक उत्कृष्ट नेता समाज में प्रेरणा स्थापित कर सकता है, विश्वास जीत सकता है, और समस्याओं का समाधान करने में मार्गदर्शन कर सकता है, वैसे ही इनका किसी भी मामले में बुरा होना पूरी व्यवस्था को प्रदूषित साबित करता है, भले ही फिर सब ऐसे ना हों। देश ने यह भी सदा देखा है कि, अच्छे नेतृत्वकर्ता समृद्धि, सामरिक समृद्धि, और सामाजिक समानता की दिशा में आगे ले जाते हैं, यानी उनका सकारात्मक प्रभाव आपको प्रोत्साहन देता है।
इतिहास के पन्ने देखें तो राजनीति में रिश्वत का प्रयोग नया तो नहीं है और कारवाई भी। लोकसभा अध्यक्ष रहे सोमनाथ चटर्जी ने ऐसे ही मामले में बरसों पहले दल से ऊपर उठकर १० सांसदों को एकसाथ निष्कासित किया था, तब भी इस मामले में खूब हल्ला मचा था, और आरोप-प्रत्यारोप चलते रहे थे, पर अटल सत्य है कि ‘ऐसा होता रहता है’ समझकर इसे छोड़ा या भुलाया नहीं जा सकता है। व्यक्तिगत लाभ, विशेषाधिकार या सत्ता में बने रहने के लिए रिश्वत का इस्तेमाल अथवा अनैतिक तरीके से आपसी सम्बन्धों को मजबूत करने या निराधार प्रक्रियाओं में शामिल होने के लिए इसका उपयोग सीधे तौर पर नैतिकता, ज़िम्मेदारी और सार्वजनिक सेवा के मूल्यों के साथ खिलवाड़ है तथा इससे समाज में दुर्भावना उत्पन्न होती है।
रिश्वत का ऐसा तो क्या, कैसा भी तरीका स्वस्थ और स्वच्छ भारत के लिए हानिकारक है। इससे भ्रष्टाचार आता है, जिससे सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता कम होती है और असमानता बढ़ती है। वैश्विक रूप से विकसित और स्वस्थ भारत के लिए रिश्वत को नियंत्रित करना है तो सामाजिक जागरूकता, सशक्त संस्थाएं और समय पर बेहद सख्त कानूनी कदम उठाने की आवश्यकता है। नैतिक और संवेदनशील समाज बनाने के लिए समाज के हर वर्ग को अपना सहयोग आवश्यक रूप से देना होगा है, तभी राजनीति और समाज में सुधार सम्भव होगा। शिक्षा, सामाजिक जागरूकता और नागरिक सक्रियता ही इस सुधार को प्रोत्साहित कर सकती है। जनता को चाहिए कि, ऐसे जनप्रतिनिधियों को पहली और दूसरी बार भी नहीं चुनें, जो स्वयं की समृद्धि के लिए शासन-तंत्र के माध्यम से लोगों को गलत दिशा में ले जाते हैं। शासकीय प्रक्रियाओं में पारदर्शिता व सुधार के लिए लोगों की सुनवाई में बदलाव और नैतिकता के मानकों का पालन करना पड़ेगा, तभी भारत का लोकतंत्र सुंदर दिखेगा और अन्य भी इसे देखकर सुव्यवस्थाओं को बढ़ावा देंगे।