बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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बहुत पुरानी रीत है,भारत के त्योहार।
सभी मनाते प्यार से,खुशियों की बौछार॥
भाँति-भाँति के लोग हैं,उनके रीत-रिवाज।
सभी धर्म समभाव से,करते हैं मिल काज॥
दीपों को दीपावली,रौशन करते लोग।
भाईचारा मन बसे,गले मिले सन्जोग॥
होली जलती होलिका,दुष्कर्मों का नाश।
प्रेम प्यार का पर्व यह,होता है आभास॥
रक्षा बन्धन है यही,भाई-बहन का प्यार।
इक छोटी-सी डोर में,बँधा हुआ संसार॥
विजय पर्व है दशहरा,मेला लगे अपार।
सत्य राह चल राम जी,किये दुष्ट संहार॥
विविध रूप त्यौहार के,देख अनेक रंग।
सभी धर्म हैं मानते,सबके अपने ढंग॥