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ग़ज़ल और कलाकृति को एक साथ साधने का नाम विज्ञान व्रत

मंडला(मप्र)।

लोगों में यह गलत भ्रम फैलाया गया है कि जो समझ में ना आए,वह आधुनिक कला है। हमें हर चीज दिखलाई नहीं पड़ती,किंतु उसका अस्तित्व होता है !अमूर्त से मूर्त की शैली तथा अनकहे शब्द को कह देने का इशारा ही आज की कला है।
सिद्धेश्वर के संयोजन में ‘मेरी पसंद:आपके संग’ के तहत वरिष्ठ शायर और कलाकार विज्ञान व्रत ने ऑनलाइन भेंटवार्ता के क्रम में उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए।
विशिष्ट अतिथि डॉ. शरद नारायण खरे (मध्यप्रदेश) ने कहा कि,सरलता व सादगी होने के कारण विज्ञान व्रत की ग़ज़लों के शेरों में सौंधापन, मिठास व सरसता दिखाई देती है। विशेषता यह है कि उनके शेरों में विविधता,व्यापकता व सूक्ष्मता विद्यमान है,जो सामाजिक सरोकारों का निर्वाह करने के साथ ही पाठक को चिंता व चिंतन दोनों प्रदान करते हैं।
विज्ञान व्रत पर सिद्धेश्वर ने कहा कि,ग़ज़ल और कलाकृति,दोनों दो विधाएं होकर भी,उसे एक धरातल पर खूबसूरती के साथ सजाने-संवारने और यादगार स्वरूप देने में जो मिसाल नोएडा के वरिष्ठ शायर विज्ञान व्रत ने रखी है,वह एक लंबे समय तक याद की जाती रहेगी।
इस ऑनलाइन कार्यक्रम में संजय रॉय,राज प्रिया रानी,अपूर्व कुमार,ऋचा वर्मा,दुर्गेश मोहन,मीना कुमारी परिहार,रामनारायण यादव व श्रीकांत गुप्ता आदि की भी भागीदारी रही।

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